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Skandgupt
विक्रमादित्य के जीवन के सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि उनका अन्तिम जीवन पराजय और दु:खों से सम्बन्ध रखता है । वस्तुत: चन्द्रगुप्त के जीवन काल में साम्राज्य की वृद्धि के अतिरिक्त उसका ह्रास नहीं हुआ । यह स्कन्दगुप्त के समय में ही हुआ कि उसे अनेक षड्यन्त्रों, विपत्तियों तथा कष्टों का सामना करना पड़ा । जिस समय पुरगुप्त के अन्तर्विद्रोह से मगध और अयोध्या छोड़कर स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य ने उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनायी, और साम्राज्य का नया संगठन हो रहा था उसी समय मातृगुप्त को काश्मीर का शासक नियुक्त किया गया । यह समय ईसवीय सन् 450 से 500 के बीच पड़ता है । 467 ई–में स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का अन्त हुआ । उसी समय मातृगुप्त (कालिदास) ने काश्मीर का राज्य स्वयं छोड़ दिया और काशी चले आये । अब बहुत से लोग इस बात की शंका करेंगे कि कहाँ उज्जयिनी कहाँ मगध, कहाँ काश्मीर फिर काशी, और सबके बाद सिंहल जानाµयह बड़ा दूरान्वय–सम्बन्ध है । परन्तु उस काल में सिंहल और भारत का बड़ा सम्बन्ध था । महाराज समुद्रगुप्त के समय में सिंहल के राजा मेघवर्ण ने उपहार भेजकर बोध गया में विहार बनाने की प्रार्थना की थीय महावंश और समुद्रगुप्त के लेख में इसका संकेत है और महाबोधि विहार सिंहल के राजकुल की कीर्ति है । -जयशंकर प्रसाद
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