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Sundar Bihan Hoi
हिंदी आ भोजपुरी दुन्नो के काव्य-जगत में वशिष्ठ अनूप एगो आपन पहचान रचले बाड़े। उनुका हिंदी रचना-कर्म से सभ परिचितश वा, हमरा नइखे जनात कि ओमें हमरा अपना तरफ से कुछ जोड़े के जरूरत बा, वाकिर 'समकालीन भोजपुरी साहित्य' के संपादन के दौर में उनुका भोजपुरी गीत-गजल से गुजरत हम उनुका के भोजपुरी के एगो जरूरी कवि के रूप में जनलीं, एगो अइसन कवि के रूप में, जवन भोजपुरियो के एगो जरूरत-मतिन बा। जइसन कि सबके पता वा, जवना के हिंदी पट्टी कहल जाला, ओकर मय-के-मय मातृभाषा उपेक्षा आ अनादर के शिकार भइल जाता। नेता-परेता लोग का करी, का ना करी, ऊ लोग जाने, बाकिर रचनाकार लोग के त चहवे करी कि ऊ अपना मातृभाषा में सतत रचत रहे, अइसन कुछ रचत रहे जवन ओह उपेक्षा के उपेक्षित करत रहे, अनादर के अनावृत करत रहे। अइसन वेंवत हमरा भोजपुरी के जवना रचनाकारन में लउकल, वशिष्ठ अनूप ओमें से एगो प्रमुख बाटंड। इनिका भोजपुरी गीत-गजल में पाइब कि भोजपुरी, भोजपुरियत, अपना मन, अपना मिजाज के साथे त बड़ले बा, एकरा साथ-साथे, जवना जिम्मेदारी से ऊ अपना काव्य-परंपरा के दाय के सम्हरले बा, ओही जिम्मेदारी से अपना आज के साथे तालमेल बनवले वा, गाँव-घर से, नगर महानगर से, आ निजी से लेके राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सरोकारन तक से मुखातिब बा, ना दब के बतियावत वा, ना दवा के वतियावत बा, आ बतियावत वा जरूर।
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