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Vijaymohan Singh : Jeevan Aur Srajan
हिंदी साहित्य जगत में विजयमोहन सिंह का नाम खास स्थान का अधिकारी है। उनके लेखन का दायरा व्यापक है। वे एक समय में कई विधाओं में लिखने वाले रचनाकार हैं। कहानी, उपन्यास, आलोचना, जीवनी, फिल्म समीक्षा, संगीत की बारीकियां, कला के अन्य अनेक रूप उनके लेखन के दायरे में हैं और वे इन सबको एक साथ साधते हैं। हालांकि अपने लेखन के प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने अन्य लेखक मित्रों की अपेक्षा कम लिखा पर चर्चा में किसी से कमतर न रहे। इसका उल्लेख उनके मित्र कथाकार काशीनाथ सिंह और दूधनाथ सिंह ने बार-बार किया है, लिखकर और बातचीत में भी। विजयमोहन सिंह के बारे में बातचीत करने पर काशीनाथजी की आंखों में विशेष चमक आ जाती है और उनकी बातों का जो सिलसिला शुरू होता है, थमने का नाम ही नहीं लेता। बनारस, भोपाल, शिमला और दिल्ली में उनके साथ बिताए गए यादगार दिनों की चर्चा तो वे करते ही हैं, बीच-बीच में ऐसी टिप्पणियां करते हैं कि विजयमोहन सिंह के रचनात्मक व्यक्तित्व के अनेक नए पक्ष भी सामने आ जाते हैं। गौर करें-"वे कहानियां गले के ऊपर से लिखते हैं मगर आलोचनाएं समूचे मन से। विसंगतियों और विडंबनाओं से बिंधा उनका व्यक्तित्व कहानियों की आलोचनाओं में खुलने लगता है और जब वह सचमुच खुलने लगता है, विजयमोहन ठेंपी मार देते हैं।" (याद हो कि न याद हो, पृष्ठ 102)। काशीनाथजी द्वारा प्रयुक्त ठेंपी शब्द विजयमोहन के लेखकीय व्यक्तित्व को समझने में काफी मददगार है। खीझ भरा काशीनाथजी का एक दूसरा वाक्य है, "वे वह कर सकते हैं जो हममें से कोई नहीं कर सकता लेकिन उनसे यह कौन कहे और कितनी बार कहे... आप अपनी शाम की चिंता करें और दूसरे आपकी।" (वही)। अनायास नहीं है कि दूधनाथजी उन्हें 'अचारीजी' कहते थे। 'आचार्य जी' शब्द का यह रूप विजयमोहनजी के लिए फिट था। काशीनाथजी से कई बार अनुरोध करने पर भी वे विजयमोहन सिंह पर लिखने के लिए तैयार न हुए। उनका कहना था कि विजयमोहनजी के बारे में मुझे जो कहना था वह मैं 'किस्सा साढ़े
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