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Vivekanand
सृजन की अंतर्प्रज्ञा से संश्लिष्ट और उसकी जटिलता के प्रति सचेष्ट आनंद कुमार सिंह अपने लेखन में सकारात्मक मांगलिक भाव-बोध के ऐसे सोपान रचते हैं जो सामाजिक को आरोही बनाते है। उनका लिखा धारोष्ण और मधुर है। वंशी और शंख दोनों के स्वर उनकी भाषिक संरचना में विन्यस्त हैं। 'विवेकानंद' मेरे कथन का साक्ष्य है। - देवेंद्र दीपक, भोपाल डॉ. आनंद कुमार सिंह ने 'विवेकानंद' का छंद-शतक रच कर एक प्रकार से भारतीय गौरव की कीर्ति-गाथा रच दी है। 'विवेकानंद' में भूगोल अपनी प्रकृति में प्रफुल्लित हुआ है, इतिहास अपने अतीत की सनातनता में मुखर हुआ है, अध्यात्म भारतीय वाङ्मय की प्राणधारा के रूप में प्रवाहित हुआ है, राजनीति नव-जागरण की राष्ट्रीय चेतना में अभिव्यक्त हुई है और पुरातन काल, मध्य काल, आधुनिक काल तीनों के सामंजस्य से विवेकानंद न केवल भारत बल्कि सृष्टि-कल्प के उद्गाता की तरह प्रकट हैं। - रमेश दवे, उज्जैन भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा को पुरस्कृत करने वाले वर्तमान दौर के सबसे ऊर्जावान कवि आनंद कुमार सिंह ने निराला की सबसे लंबी कविता 'तुलसीदास' के छंद और उसकी तर्ज पर एक ऐसी अद्भुत कविता की सृष्टि की है जो स्वामी जी के व्यक्तित्व और चिंतन को समग्रता में उद्भासित करती है। अनेक ज्ञानानुशासनों में अप्रतिहत गति रखने वाले 'अथर्वा' के कवि द्वारा ही यह संभव भी था।