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Wo Jo Rah Gayi Ankahi

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2017
978-93-85450-92-1

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हर शख़्स की एक दाख़िली दुनिया होती है, जिस में जज़्बातो–एहसासात, भावों और भावनाओं की धाराएँ बहती रहती हैंय और अगर वो शख़्स दानिशमंद होने के साथ–साथ अपने इर्द–गिर्द हो रही तब्दीलियों और कशमकश से भी आशना हो तो एहसास की शिद्दत और हिस्सियत या संवेदनाओं की बुलंदी में इजाफ़ाफि’तरी या प्राकृतिक है । शुभांगी शर्मा का क’लाम, खासतौर से उनकी नज़्में पढ़ कर उनकी ज़ाहिरी दुनिया के इंतेज़ामी शोऊर या प्रबंधकीय योग्यता और कुशलता से बिल्कुल अलग उनकी दाख़िली दुनिया में मोवासिर या समकालीन औरत की हिस्सियत या संवेदनशीलता के साथ–साथ नाजुक और कोमल एहसासात की लहराती तरंगों का बखूबी मुशाहिदा होता है । उनका कलाम मौजूदा जमाने का आईना होने के साथ–साथ खुद आज हर दिन बदलते रवइय्यों, कद्रों, धारणाओं और द्वन्द्वकी दास्तान भी है, जो बयाँ होकर भी अनकही रह गयी है । इस मजमुए के आख़िर में शुभांगी शर्मा की बहन मंजू शर्मा की चंद नज़्में भी शामिल हैं, जो ज़िक्रशुदा खुबियों के साथ–साथ इज़हारे–बयान की इन्फरादियत या विशेषता की हामिल भी हैं । -अख़लाक’ ‘आहन’

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