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Aadiwasi Chintan Ki Bhumika

(4.50) 2 Review(s) 
2019
978-93-85450-61-7

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भारत सरकार की नई आर्थिक नीतियों ने आदिवासी शोषण–उत्पीड़न की प्रक्रिया तेज की, इसलिए इसका प्रतिरोध भी मुखर हुआ । शोषण और उसके प्रतिरोध का स्वरूप राष्ट्रीय था, इसलिए प्रतिरोध से निकली रचनात्मक उर्जा का स्वरूप भी राष्ट्रीय था । आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुई रचनात्मक उर्जा का नाम ही समकालीन आदिवासी साहित्य आंदोलन है । आदिवासी साहित्य अस्मिता की खोज, दिकुओं द्वारा किये गए और किये जा रहे शोषण के विभिन्न रूपों के उद्घाटन तथा आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व के संकटों और उनके खिलाफ हो रहे प्रतिरोध का साहित्य है । यह उस परिवर्तनकामी चेतना का रचनात्मक हस्तक्षेप है जो देश के मूल निवासियों के वंशजों के प्रति किसी भी प्रकार के भेदभाव का पुरजोर विरोध करती है तथा उनके जल, जंगल, जमीन और जीवन को बचाने के हक में उनके ‘आत्मनिर्णय’ के अधिकार के साथ खड़ी होती है ।

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Reviews
काफी दिनों से मुझे कुछ इसी तरह की पुस्तक की तलाश थी जो फाइनली मिल ही गई। आदिवासी चिंतन की भूमिका समझनी है तो अवश्य पढ़ें और चर्चा करें
Kishan Sharma, Pryagraj
यह पुस्तक परिवर्तनकामी चेतना का रचनात्मक हस्तक्षेप है जो देश के मूल निवासियों के वंशजों के प्रति किसी भी प्रकार के भेदभाव का पुरजोर विरोध करती है तथा उनके जल, जंगल, जमीन और जीवन को बचाने के हक में उनके ‘आत्मनिर्णय’ के अधिकार के साथ खड़ी होती है ।
NAVEEN, BANARAS