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Adivasi Aur Hindi Upanyas

(4.50) 4 Review(s) 
2019

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जब सरकार को लगा कि संप सभा के धूणी धाम जागृति का केन्द्र बनते जा रहे हैं और आदिवासियों के मध्य फैल रही जागृति का मतलब सिर्फ उनकी आंतरिक समस्याओं के प्रति जागरुकता तक सीमित न होकर राज के शोषण के खिलाफ चेतना फैलाने तक है तो उसने दमन की नीति अपना ली । जागृति के केन्द्र धूणी धामों को नष्ट करना शुरू कर दिया गया । थावरा गोविंद गुरू को अपराधी जनजाति अधिनियम या जरायमपेशा कानून (1871) के माध्यम से किये जा रहे दमन के बारे में बताते हुए कहता है, ‘जरायम पेशा कानून के तहत संप सभा के कार्यकर्त्ताओं को जागीरदारों व पुलिस द्वारा तंग किये जाने जैसी सूचनाएं इधर–उधर मिली हैं । निर्दाेष लोगों को बिना वजह इस कानून के तहत थानों व चैकियों में बुलाया जाता है । उन पर चोरी व लूट के झूठे मुकदमे लगाकर गिरफ्तार करके जुल्म ढाये जा रहे हैं । संप सभा के कार्यकर्ताओं के मनोबल को गिराने के लिए उन्हें थाना–चैकियों में बुलाकर उल्टे–सीधे सवाल पूछे जाते हैं और देर–देर तक वहाँ बिठा लिया जाता है ।’

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Reviews
आदिवासी जीवन पर आधारित उपन्यास के बारे मै वीर भारत तलवार का मानना है की। आदिवासी समाज मै सालो तक रहने वाले रचनाकार तीसरी श्रेणी के उपन्यासकर होते है।
banti, delhi
आदिवासी समाज की अपनी संस्कृति, धर्म , भाषा,और निर्जातीये पहचान होती है।
arvind, hathras
aadvasi aur upniyas book mai aadvasi ke rehen sehan aur unki sanskriti ke bare mai acche se batya hua hai
prem, delhi
आदिवासी और हिंदी उपन्यास" एक आकर्षक किताब है जिसने मुझे आदिवासी समाज और उनके जीवन के बारे में एक नया दृष्टिकोण दिया है। लेखक ने हिंदी उपन्यासों में आदिवासियों के चित्रण का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए जरूरी है जो आदिवासी साहित्य और भारतीय साहित्य के इतिहास को समझना चाहते हैं।
Manoj Singh, Balia