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Aalochana Ki Chunotiyan

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2013
978-93-81272-97-8

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मैनेजर पाण्डेय हिन्दी के पाँच महाभूत आलोचकों (रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह और मैनेजर पाण्डेय) में एक हैं। उन्होंने रामविलास शर्मा की तरह किसी कवि, लेखक, आलोचक और युग विशेष पर कोई स्वतन्त्र पुस्तक नहीं लिखी है। और न ही नामवर सिंह की तरह किसी विधा, युग और किसी आलोचक के बहाने किसी परम्परा - विशेष पर भी पुस्तक लिखी है। उनकी मुख्य चिन्ता 'मुक्तिधर्मी चेतना के विकास' की है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वे साहित्य विचार और सिद्धान्त के क्षेत्र में कम सक्रिय हैं। वे पिछले चालीस वर्षों से निरन्तर सक्रिय और संघर्षरत हैं। वे आलोचना को साहित्य की दुनिया तक सीमित नहीं मानते। उनके अनुसार 'आलोचना का भविष्य व्यापार सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक सवालों से मुठभेड़ पर निर्भर है', उनके लिए समकालीन रचनाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण समकालीन प्रश्न हैं। उन्होंने आलोचना को रचना केन्द्रित भर न मानकर उसे समय और समाज केन्द्रित वनाया है। उनकी आलोचना 'नयी सांस्कृतिक चेतना के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाली आलोचना' है और उनकी आलोचना के केन्द्र में इतिहास-बोध और दृष्टि है। वे आलोचना की सामाजिकता पर विचार करते हैं। उन पर किसी भी बड़े विचारक, चिन्तक और दार्शनिक का आतंक नहीं है और न वे अपनी आलोचना से किसी को आतंकित करते हैं। वहाँ संवाद प्रमुख । वे संवाद धर्मी आलोचक हैं। - रविभूषण

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