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Achha To Fir Theek Hai
सामाजिक मान्यताओं के बरक्स यथार्थ का चेहरा कुछ अलग ही होता है। विडंबनाओं के कारणभूत सत्य को देख पाने की दृष्टि और तद्जन्य अनुभूति की प्रगाढ़ता कामेश्वर की कहानियों को प्रासंगिकता का वह धरातल देती है कि देश और काल का सत्य अपने यथार्थ रूप में प्रकट होता है। बद्धमूल विचारधाराओं के इस दौर में बहुत-कुछ ऐसा छूट जाता है जिसे शामिल किये बिना जनवादी आकांक्षाओं का फलीभूत होना संभव नहीं। दमन और शोषण का सिलसिला बंद न होने के बावजूद दलित-शोषित और सवर्ण की भूमिकाओं में आ रहे बदलाव, राजनीति का छुटभइयापन और कल्याणकारी राज्य के अवशेषों को बचाने का छिट-पुट संघर्ष, मुक्ति का आस्वाद लेती नारी की बेबसी, मनुष्य का सहज शोषक स्वभाव और लहु की कीमत पर परिवार का पोषण। संत्रास, बेतुकेपन और विरोधाभासों को ये कहानियाँ न केवल उभारती हैं, बल्कि उनसे पार पाने की जद्दोजहद में जीवन को अर्थवत्ता प्रदान करती हैं।