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Balika Shiksha Parivahan Aur Gyan

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2016
978-93-82821-92-2

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भारत की आजादी के साथ ही यहां की वयस्क स्त्रियों को अपना जन–प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिल गया था, किंतु उनमें शिक्षा का प्रसार बहुत मामूली था । जैसे–जैसे समय बीतता गया है, स्त्री–शिक्षा का प्रतिशत बढ़ता गया है । किंतु इनमें शिक्षितों का प्रतिशत जितना प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर है, उतना उच्च शिक्षा में नहीं । यह एक चिंता का विषय है । समृद्ध परिवारों की बालिकाएं उच्च शिक्षा में भी आगे आ रही हैं, क्योंकि उसमें आने वाली बाधाएं उनके आर्थिक संसाधनों से दूर हो जाती हैं । किंतु गरीब परिवार की बालिकाआंे को भारत की आजादी के साथ ही यहां की वयस्क स्त्रियों को अपना जन–प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिल गया था । अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है । ग्रामीण क्षेत्र हों या शहरी ड्ड यहां विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संख्या सीमित है और जो हैं वे सबके लिए सुलभ नहीं हैं, ये गरीब छात्र–छात्राओं की पहुंच से दूर हंै । एक बड़ी समस्या तो परिवहन की है । आवास से शिक्षा–संस्थानों की दूरी जैसे ही बढ़ने लगती है, बालिकाओं की पढ़ाई का क्रम भंग हो जाता है । हमारे समाज में स्त्रियों की जो स्थिति है उसमें वे इतनी समर्थ नहीं हो सकी हंै कि वे स्वतंत्रतापूर्वक कहीं भी अकेली आ–जा सकें । उनकी पढ़ाई निरंतर जारी रह सके, इसलिए भारत के कई राज्यों ड्ड पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि ड्ड में बालिकाओं को सरकार द्वारा मुफ्त साइकिलें उपलब्ध कराई जा रही हैं । इस पुस्तक से शिक्षा और साइकिल के रिश्ते के बारे में कुछ सूचनाएं मिलती हैं और कुछ सवाल उभरते हैं । -राजेन्द्र रवि

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