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Bandi Jeevan: Uttar Bharat Mai Kranti Ka Udyog

(4.60) 5 Review(s) 
2019
978-93-89191-29-5

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बनारस षड्यंत्र केस’ उत्तर भारत का प्रथम क्रांतिकारी प्रयास था जिसमें क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल 26 जून 1915 को गिरफ्तार कर लिए गए और 14 फरवरी 1916 को आजीवन काला पानी की सजा के साथ ही उनकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई । कुछ समय उन्हें बनारस के कारागार में रखने के बाद अगस्त में अंदमान भेज दिया गया जहां से फरवरी 1920 में सरकारी घोषणा से रिहा हुए । उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी । काला पानी से लौटकर ही उन्होंने ‘बंदी जीवन’ की रचना की । उनके वे दिन सचमुच बहुत कठिन थे । इस पुस्तक का पहला भाग उन्होंने बंगला भाषा में लिखा और छपवाया । फिर स्वयं ही उसका हिंदी अनुवाद किया और बाद का हिस्सा तो हिंदी में ही लिपिबद्ध किया । इस पुस्तक की खास बात यह थी कि वे लिखने चले थे बंदी जीवन लेकिन कलम उठाई तो क्रांतिकारी संग्राम के इतिहास, उसकी गुत्थियों और भविष्य की योजनाओंं का लेखा–जोखा तैयार करने लग गए । पुस्तक छपते ही लोकप्रिय हो गई और जल्दी ही उसे क्रांतिकारियों की ‘गीता’ का दर्जा मिल गया । अंदमान से लौटने के बाद उन्होंंने विवाह कर लिया था लेकिन क्रांंति का हौसला अभी टूटा नहींं था । अब उनके सामने बड़ा संकट यह था कि क्रांंतिकारी संग्राम मेेंं पुन% सक्रिय होने और फरारी जीवन की कठिनाइयों के चलते वे अपनी गृहस्थी का क्या करेंगे । कहां छोड़ेंगे बीवी–बच्चों को । वे चार भाई थे । सबसे बड़े वे स्वयं । विवाह दूसरे भाई रवीन्द्रनाथ का भी हो चुका था और वे गोरखपुर के सेंट एण्डूªज कालेज में अध्यापन कर रहे थे । बनारस मामले में जब सान्याल जी गिरफ्तार हुए तब उनके ये भाई भी पकड़े गए जिन्हें न्यायालय से मुक्त होनेे पर भी गोरखपुर में नजरबंद रखा गया था । तीसरे भाई जितेन्द्रनाथ इण्डियन पे्रस मेंं काम कर रहे थे और सबसे छोटे भूपेन्द्रनाथ अभी कालेज मेंं शिक्षार्थी ही थे ।

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Reviews
यह पुस्तक सभी भारतीयों को यह जानने के लिए अवश्य पढ़नी चाहिए कि कुख्यात जोड़ी के अलावा कितने लोगों ने हमारी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी, संघर्ष किया और अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। और एक बार जब आप दूसरों के महान बलिदानों के बारे में जान जाते हैं, तो यह तार्किक रूप से सामने आता है कि कैसे कुख्यात जोड़ी के अलावा अन्य सभी के संघर्ष को अदालत के इतिहासकारों ने कालीन के नीचे दबा दिया था। आज के कई युवा और सिद्धांतवादी इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के प्रयासों की बदौलत हम भारत के स्वतंत्र अस्तित्व के एक बड़े हिस्से के लिए सत्ता में बैठे लोगों द्वारा बनाई गई संकीर्ण काल्पनिक तस्वीर से परे बड़ी तस्वीर देखने में सक्षम हैं।
ravi, bhagalpur
भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई।
tarun, mumbai
बंदी जीवन: उत्तर भारत में क्रांति का उद्योग' ने मेरे लिए एक सच्चे अनुभव का साक्षी दिया। सुधीर विद्यार्थी की कल्पना और कथानक ने मुझे उस दौर की वास्तविकता में ले जाया, जब भारतीयों ने स्वतंत्रता के लिए जीवन की बाजी लगा दी थी। यह पुस्तक सचमुच अनमोल है।
Anuska Sharma, Jhansi
सुधीर विद्यार्थी की 'बंदी जीवन: उत्तर भारत में क्रांति का उद्योग' ने मुझे अपने साहसिक कथानक और ऐतिहासिक विश्लेषण से प्रभावित किया है। यह पुस्तक उत्तर भारत के अनजाने हीरोज की कहानी को बयान करती है और पढ़ने के बाद मुझे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अधिक गहराई महसूस होती है।
Aditi Maurya, Amritsar ,Punjab
इस पुस्तक में सुधीर विद्यार्थी ने बहुत ही सुंदर ढंग से बंदी जीवन के विभिन्न पहलुओं को पेश किया है। उनकी लेखनी में एक अलग ही संवेदनशीलता है जो पढ़ने वाले को गहरे रूप से प्रभावित करती है। इस पुस्तक को पढ़कर बंदी जीवन के मार्मिकता को समझना संभव होता है।
Ankit Tiwari, Allahbad