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Bandi Jeevan: Uttar Bharat Mai Kranti Ka Udyog
बनारस षड्यंत्र केस’ उत्तर भारत का प्रथम क्रांतिकारी प्रयास था जिसमें क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल 26 जून 1915 को गिरफ्तार कर लिए गए और 14 फरवरी 1916 को आजीवन काला पानी की सजा के साथ ही उनकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई । कुछ समय उन्हें बनारस के कारागार में रखने के बाद अगस्त में अंदमान भेज दिया गया जहां से फरवरी 1920 में सरकारी घोषणा से रिहा हुए । उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी । काला पानी से लौटकर ही उन्होंने ‘बंदी जीवन’ की रचना की । उनके वे दिन सचमुच बहुत कठिन थे । इस पुस्तक का पहला भाग उन्होंने बंगला भाषा में लिखा और छपवाया । फिर स्वयं ही उसका हिंदी अनुवाद किया और बाद का हिस्सा तो हिंदी में ही लिपिबद्ध किया । इस पुस्तक की खास बात यह थी कि वे लिखने चले थे बंदी जीवन लेकिन कलम उठाई तो क्रांतिकारी संग्राम के इतिहास, उसकी गुत्थियों और भविष्य की योजनाओंं का लेखा–जोखा तैयार करने लग गए । पुस्तक छपते ही लोकप्रिय हो गई और जल्दी ही उसे क्रांतिकारियों की ‘गीता’ का दर्जा मिल गया । अंदमान से लौटने के बाद उन्होंंने विवाह कर लिया था लेकिन क्रांंति का हौसला अभी टूटा नहींं था । अब उनके सामने बड़ा संकट यह था कि क्रांंतिकारी संग्राम मेेंं पुन% सक्रिय होने और फरारी जीवन की कठिनाइयों के चलते वे अपनी गृहस्थी का क्या करेंगे । कहां छोड़ेंगे बीवी–बच्चों को । वे चार भाई थे । सबसे बड़े वे स्वयं । विवाह दूसरे भाई रवीन्द्रनाथ का भी हो चुका था और वे गोरखपुर के सेंट एण्डूªज कालेज में अध्यापन कर रहे थे । बनारस मामले में जब सान्याल जी गिरफ्तार हुए तब उनके ये भाई भी पकड़े गए जिन्हें न्यायालय से मुक्त होनेे पर भी गोरखपुर में नजरबंद रखा गया था । तीसरे भाई जितेन्द्रनाथ इण्डियन पे्रस मेंं काम कर रहे थे और सबसे छोटे भूपेन्द्रनाथ अभी कालेज मेंं शिक्षार्थी ही थे ।