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Adhyapikiye Jeevan Ka Gaudanphal
एक लोकप्रिय शिक्षक के अध्यापकीय जीवन का यह आत्म–वृत्तांत अपने सहज गद्य, स्पष्ट विचारों व देशकाल के प्रति संवेदनशीलता की बदौलत अत्यंत ही पठनीय बन पड़ा है । स्वातंत्र्योत्तर भारत के आरंभिक दशकों में उदघाटित नवीन जनतांत्र्कि चेतना किस तरह उत्तर बिहार के ग्रामीण–कस्बाई परिवेश में सांस्थानिक आकार ग्रहण करती है, कैसे वह नई जनाकांक्षाओं का संवाहक बनती है और किस तरह जाति आधारित ग्रामीण व्यवस्थाओं के साथ उसका आरोपण–प्रत्यारोपण होता है, इन परिघटनाओं की झलक इस किताब में है । सामाजिक–सांस्कृतिक परिवर्तनों में रुचि रखने वाले पाठक और शिक्षा के अध्येता नि%संदेह इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे । -- डॉ– मणीश के. ठाकुर प्रोफेसर, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनजमेंट, कोलकाता
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