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Dastan-e-Noushad
बचपन से संगीत के जिस जुनून को सीने से लगाए रखा–––उसे पाला–पोसा, संगीत का वह जुनून मेरे दिल–ओ–दिमाग के साथ खेलने और बातें करने लगा है । परिंदों की चहचहाहट में, हवा की सनसनाहट में और लहरों की कलकल में, कुदरत का जो अमर संगीत है, वह अपना वजूद दिखा जाता है । कुदरत के इस संगीत के उतार–चढ़ाव जाने–अनजाने मुझे भी अपनी जिं़दगी के संगीत में ले जाते हैं और मेरी ज़िंदगी की यादों की लहरें मेरी याददाश्त के दरवाज़े पर दस्तक देने लगती हैं । मैं संगीत की सोहबत में छोटा से बड़ा हुआ । शास्त्रीय संगीत सीखते–सीखते फिल्म लाइन में आ गया । इतने साल संगीत की सा/ाना की । फिर भी लगता है कि संगीत के इस फैले हुए विशाल समंदर में मैं एक तालिब, एक विद्यार्थी हूं । समंदर की लहरों की तरह मेरी ज़िंदगी में अनगिनत लोग और अलग–अलग फ़नकार आए । फ़िल्म की दुनिया में–––संगीत–कला के आंगन में जीता रहा–––बढ़ता रहा । मेरी जिं़दगी में आए लोगों के साथ अल्लाह की मेहरबानी से उस हद तक चला गया, जो हद तय की गयी थी । और जिस तरह कोई लहर साहिल पर आ कर टूट जाती है, फैले हुए समंदर में बिखर जाती है य उसी तरह मैं उनसे दूर चला गया । फिर किसी दूसरी लहर के साथ मेरे सफ़र का आग़ाज हुआ । फ़न के दरबार में ख़िदमत करते हुए मुझे कला के अनगिनत छोटे–बड़े पुजारी कला की आरा/ाना करते हुए दिखाई दिए । उनमें से कुछ बुलंदी पर पहुंच गए तो कुछ वक़्त के अं/ोरों में खो गए । जहां तक मुमकिन था, मैंने सबके साथ चलने की कोशिश की । इस कोशिश में कभी मैं कामयाब रहा तो कभी पिछड़ गया । नौशाद।
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