• New product

Chauraahe Par Chehra

(0.00) 0 Review(s) 
2020
978-93-89191-41-7

Select Book Type

Earn 4 reward points on purchase of this book.
In stock

फेसबुक में आने से पहले मुझे यह पता नहीं था कि उत्तर–भारत के हिन्दी समाज को समझने का एक विश्वसनीय रास्ता है । इस समाज में कितनी अधिक धार्मिक जड़ता और कट्टरता है, साम्प्रदायिकता है जो हिंसा की सीमाओं तक पहुँची हुई है । जिन साम्प्रदायिक और घृणा फैलाने वाले विचारों की कल्पना करना कठिन है वे फेसबुक पर देखे जा सकते हैं । हिन्दु–मुस्लिम साम्प्रदायिकता अपने भयानक और विस्फोटक रूप में फेसबुक पर दिखाई देती है । एक समुदाय दूसरे के प्रति केवल घृणा का प्रचार ही नहीं करते बल्कि चरित्र हनन के भयानक उदाहरण भी पेश करते हैंं । यह जानकारी न तो पत्रिकाओं के माध्यम से मिलती है न समाचार–पत्रों के माध्यम से, न पुस्तकों के माध्यम से और न टेलीविज़न और रेडियो के माध्यम से । कहने का मतलब यह है कि फेसबुक वास्तव में एक वास्तविक चैराहा हैµएक नंगा समाज है, एक निर्लज्ज़ समाज है, एक हिंसक समाज है और घृणा और हिंसा से भरा हुआ समाज है । लेकिन यह फेसबुक का एक नकारात्मक पक्ष है । इसके कई सार्थक पक्ष भी है । इसके मा/यम से विचारों का आदान–प्रदान करता है और जनहित में जनमत बनाता है । बहुत–सी ऐसी घटनाएं रही हैं जो अनदेखी रह जाती, जिनके ऊपर कोई प्रतिक्रिया न होती, जिन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हो पाती यदि वे फेसबुक के माध्यम से लोगों के सामने न आ गई होतीं । फेसबुक की यह भूमिका एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी बहुत प्रशंसनीय है । जनता पर शासन द्वारा किये गये अत्याचार, अन्याय और शोषण की ऐसी जानकारियाँ फेसबुक पर मिलती हैं जो अन्यथा नहीं मिल पाती हैं । ऐसी घटनाओं पर बहुमत की प्रतिक्रिया प्रशासन और सरकारों को उचित क़दम उठाने के लिए बाध्य कर देती है । यह फेसबुक की एक बड़ी उपलब्धि है । फेसबुक के मा/यम से साहित्यिक और सांस्कृतिक रचनाओं और जानकारियों का आदान–प्रदान भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है । इस पुस्तक में मेरी फेसबुक रचनाओं के सभी आयाम देखे जा सकते हैं ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.