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Bhartiya Navjagarn Aur Dinkar

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2022
978-93-82554-33-2

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भारतीय नवजागरण हमेें सांंस्कृतिक दृष्टि से मध्ययुग से अलग करके आधुनिक होने का आधार देता है । आधुनिकता का प्रारंभिक दौर वस्तुत: परम्परा के पुनर्पाठ से जुड़ा है । परम्परा का यह पुनर्पाठ यद्यपि प्रादेशिक स्तर पर भिन्न था-उसमें अनेक धाराएँ और उपधाराएँ विद्यमान थी किन्तु उनमें विद्यमान सामान्य तत्त्व भारतीय नवजागरण का एक समग्र बिम्ब बनाते हैं । हिन्दी पट्टी का नवजागरण समाज सुधार से अपनी यात्रा आरंभ करके अन्तत: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का साक्षी ही नहीं सहयात्री भी बनता है । सृजन के स्तर पर जिन कृति रचनाकारों ने भारतीय नवजागरण को विचार एवं भावना के स्तर पर अभिव्यक्ति दी उनमें दिनकर का स्थान अत्यन्त विशिष्ट है । उन्होंने न केवल अपनी राष्ट्रीय कविताओं, बल्कि काव्य की अन्य प्रवृत्तियों में भी भारतीय नवजागरण को प्रतिबिम्बित किया । इस दृष्टि से यह ग्रंथ दिनकर–काव्य के अध्येताओं के लिए एक नयी दिशा की ओर इंगित करता है ।

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