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Chinta Mukti Ki Dagar
चिंता की अपनी विषैली विशेषता है । उसे चिता का पर्याय माना गया है । चिता तो मृृतक को जलाती है परंतु चिंता की अग्नि जीवित प्राणी को तिल–तिल करके भस्म कर देती है । चिंताग्रस्त व्यक्ति को न दिन में आराम मिलता है न रात में चैन । दिन–रात उसे असमाप्त भीषण ज्वाला की तपिश में झुलसना पड़ता है । मस्तिष्क सिकुड़कर मात्र एक ही बिंदु पर केंद्रित हो जाता है । कंठ सूख जाता है, क्षुधा भस्म हो जाती है, रक्त जलने लगता और घटने लगता है ।
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