- New product
Chitra Samvad
भारत की जो सभ्यता–संस्कृति है, जिसकी निरंतरता हजारों बरसों की है, उसका स्वाद अभी पश्चिम ने चखा नहीं है । उन्होंने जो औद्योगिक उपलब्धियां हासिल की, जहां बड़ी–बड़ी औद्योगिक इकाइयों में विशालकाय मशीनों के जरिए बड़े पैमाने पर उन चीजों का उत्पादन किया जाने लगा, जो सुविधा की चीजें थीं या कहें, जिन्हें वे अपनी सुविधा की चीजें मानते थे और जिसकी शायद उन्हें जरूरत नहीं थी, तब भी । वे तमाम चीजें बनाने, उनका उपभोग करने और एक बड़ा बाजार खड़ा कर उन्हें दुनिया भर में बेचने भी लगे । लेकिन उनके पास जीने का इतना अनुभव नहीं है । इसलिए हर चीज उन्हें जल्दी चाहिए । इस ‘जल्दी चाहने’ में औद्योगिक क्रांति हुई, तरह–तरह के कारखाने लगे और उसको उन्होंने आधुनिकता के रूप में देखा । फिर उन्हीं के संदर्भ में बाकी चीजें व्याख्यायित होने लगीं । जीवन भी । इसमें उन्होंने कला को भी शामिल किया और वहां जो कला संभव हुई, उसे आ/ाुनिक मान लिया । न सिर्फ मान लिया गया बल्कि प्रचारित–प्रसारित भी किया गया । कला उत्पादन की वस्तु हो गयी । मनुष्य उपभोक्ता हो गया ।
You might also like
No Reviews found.