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Chuni Hui Kahaniya : Muktibodh
मुक्तिबोध मध्यमवर्ग और उनकी कुण्ठा, उनके अवसाद, संकट, आत्मपरस्ती व संघर्ष से भलीभाँति परिचित थे। मध्यमवर्गीय जीवन-संघर्ष को उन्होंने जितने नज़दीक से देखा, परखा और समझा; शायद ही किसी रचनाकार ने देखा-समझा हो। इस कारण उनकी कहानियों में मध्यमवर्ग की उपस्थिति अधिक स्पष्ट और मुखर है। 'ज़िन्दगी की कतरन' इस दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण कहानी है। इस कहानी के आत्महत्या करते तिवारी हों या खौफनाक जड़ता के विरुद्ध लड़ती अकेली निर्मला की आत्महत्या का प्रसंग पाठक के सोच को तराशते ही हैं। मुक्तिबोध जी ने इस कहानी में लिखा है 'मध्यमवर्गीय समाज की साँवली गहराइयों की सैंधी हवा की गन्ध से मैं इस तरह वाकिफ़ हूँ जैसे मल्लाह समुन्दर की नमकीन हवा से।' 'समझौता' कहानी त्रासद विडम्बना का उत्कृष्ट नमूना है जो मुक्तिबोध के रचना-कौशल की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। इस कहानी में उन्होंने एक गम्भीर मुद्दा उठाया है : 'यह तो सोचो कि वह कौन मैनेजर है जो हमें-तुम्हें, सबको, रीठ-शेर-भालू-चीता-हाथी बनाये हुए है !' दूसरे शब्दों में, यह कहानी मनुष्यों को पशु में तब्दील करनेवाले क्रूर तंत्र की गाथा सुनाती है। कहने की ज़रूरत नहीं कि वह तंत्र आज हम सब पर ज़्यादा भारी पड़ रहा है। नेहरू युग के मोह एवं स्वप्न भंग की कहानी है 'जलना'। यह कहानी स्वतंत्रता की निरर्थकता और मध्यम वर्ग के मोहभंग को दर्शाती है।
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