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Deshhit Mein Shiksh : Madan Mohan Malviya

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2015
978-93-82553-52-6

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जब लोगों को भली–भाँति लिखना–पढ़ना आ जाएगा, तब वे रामायण, महाभारत, भागवत इत्यादिक ग्रन्थों के भाषानुवादों को पढ़कर भारतवर्ष की प्राचीन महिमा को जान सकेंगे और वर्तमान पुस्तकों और समाचारपत्रों से जान लेंगे कि हमारी अब कैसी दशा है । इससे उनको अपने देश की दशा में उचित परिवर्तन करने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होगी और बुद्धिमान् लोग देश की राजनैतिक, सामाजिक और अर्थ–सम्बन्धी दशा सुधारने के लिए जिन उपायों का निश्चय करेंगे, उनमें सब लोग सहायक होंगे । काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद–मात्सर्य से रहित विद्वान् और परोपकारी पुरुष देश के कल्याण के लिए उपायों को सोचें और साधारण लोग उन उपायों को अमल में लाने में प्रयत्न करें, तो देश की दशा में स्पष्ट परिवर्तन हो सकता है । खेती के काम में भारतवासी जितने परिश्रमी और निपुण हैं, उससे अधिक अन्य देशों में थोड़े ही लोग पाये जाएँगे । यहाँ भूमि का अभाव नहीं, जल का अभाव नहीं, लकड़ी का नहीं, धातुओं का नहींय ऐसी अवस्था में जब प्रजा पढ़ी–लिखी हो और प्रजा के प्रमुख विद्वान्, बुद्धिमान्, परोपकारी और स्वार्थ–निरपेक्ष हों, तो कोई कारण नहीं है कि भारतवर्ष समृद्ध से समृद्ध देशों की समता न कर सके । इसके लिए देश–भर में उपकारी विद्या का प्रचार ही आवश्यक है और इस विचार के लिए यत्न करना ही हमारा मुख्य कर्त्तव्य है! -मदनमोहन मालवीय

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