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Digital India Aur Bharat
आजादी के समय जितनी आबादी थी, उतने लोग तो अब गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं । बदहाली को दूर करने की बजाय सरकार द्वारा विपन्नता के सागर में स्मार्टसिटी के सौ द्वीप तो भविष्य में समस्या को और अधिक बढ़ाएंगे । ‘मेक इन इंडिया’ की बात करने वाली सरकार ने ‘डिजिटल इंडिया’ के नाम पर भारत के पूरे सूचना तंत्र को अमेरिकी कंपनियों के हवाले कर दिया है । ये कंपनियां भारत में अपने सर्वर क्यों नहीं लगातीं, जो रोजगार सृजन के साथ–साथ सुरक्षित समाज का निर्माण भी कर सकें । आर्थिक उदारवाद के दौर में हजारों करोड़ की सरकारी सम्पत्ति को चरने वाले माल्या जैसे लोग आजाद घूम रहे हैं जबकि बकरी, गालीबाज तोता तथा जासूस कबूतर की गिरफ्तारी से संविधान का मजाक बन रहा है । मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेस के नारों के शोर और खर्चीले विज्ञापनों में गवर्नमेंट तो दिख रही हैं, लेकिन गवर्नेस क्यों गायब है ? विफलता का ठीकरा विपक्ष पर डालते हुए, जनता का ध्यान भटकाने के लिए बीफ या ऑड–ईवन की सनसनी पैदा की जा रही है––– ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत महिलाओं को न्यूनतम मजदूरी के कानून का पालन भी सुनिश्चित नहीं हो पा रहा दूसरी ओर मंदिर मस्जिद में महिलाओं को प्रवेश के अधिकार को क्रान्ति का नाम दिया जा रहा । इन प्रतीकों से महिलाओं की मूल समस्याओं मंे सुधार की लड़ाई भटक तो नहीं जायेगी––– ई–कॉमर्स कंपनियों द्वारा एकाधिकार तथा विश्व बैंक द्वारा जनता की संचित बचत को बाजार के हवाले करने का दबाव बना हुआ है । नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी तथा मंदी से पनपे आर्थिक संकट को सरकार कैसे दूर करेगी–––!
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