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Don't Be Emotional
जो लोग महेश दर्पण की कहानियों में मध्य वर्ग या निम्न मध्य वर्ग को देख रहे हैं, उन्हें फिर से कौडवेल को पढ़ना चाहिए । विजयमोहन सिंह या नामवर सिंह जिसे आधुनिकता कहते हैं, वह डाइंग कल्चर की आधुनिकता है । निर्मल वर्मा ‘लंदन की एक रात’ कहानी में एडोलेसेंट एज के कवि हैं । उनका अतीत उसी मन: स्थिति का है । आधुनिकता का अर्थ उस समय तक बदल गया था । आधुनिकता में एक शब्द अनिवार्य तौर पर आ गया था, वह था ‘एज आफ रीजनिंग’ । महेश की कहानियां इतिहास में इसी तर्क की खोज करती हैं । महेश इस माने में इतिहासकार भी है और यथार्थ के सत्य का पुनर्नवा भी । उसकी कहानी में श्रम की सभ्यता कौडवेल की पतनशील सभ्यता के बाद की सभ्यता है जिसे मुक्तिबोध ने बार–बार परिभाषित किया है । महेश यथार्थ खोजता है कहानी के बदलाव का । महेश की इतिहास दृष्टि को समझने के लिए मैं कौडवेल की ‘डाइंग कल्चर’ को याद करता हूं । आलोचकों ने महेश की कहानियों को मध्य वर्ग की कहानियां कहा है । मैं इसे मध्य वर्ग में आंखों देखे यथार्थ की कहानी कहता हूं । महेश की कहानी में एक नई चीज देखता हूं, वह है तर्क या रीजनिंग । उसकी कहानियों में पति–पत्नी–बच्चों के भीतर एक दोस्ताना जनवाद है । वह परिवेश के भीतर से ऐसे पात्र लाता है जो कहानी में एक मानवीय नाते को डाइंग कल्चर में जीवित रखता है । उसकी कहानियों में परिवेश वर्तमान में खत्म नहीं हो जाता । बल्कि भविष्य का एक सपना छोड़ जाता है । कभी आलोचक महेश दर्पण के चरित्रों पर ध्यान देंगे तो सबसे पहले परिवेश याद आयेगा । जिसे वह बिना किसी परिभाषा के पाठक के मन में छोड़ जाते हैं । महेश अपनी कहानियों में बड़ी निर्ममता से संपादन करते हैं । मैं उन्हें संवाद और परिवेश का कथाकार मानता हूं । उनकी कहानियां आज की कहानियां हैं । पतनशील संस्कृति कैसे जीवन का हिस्सा बन जाती है, इसमें सिमटे हुए इंसान की चर्चा महेश की कहानियों के माध्यम से कभी करना चाहूंगा । महेश के यहां विट की विडंबना भी मिलेगी और रोशनी की लकीर भी । वह पाठक को आज की सभ्यता के भटकाव में कहानी का रचना संसार नहीं दिखाते बल्कि वो इस भटकाव, कुछ मजबूरियोंµजैसे बड़े आदमी का धोखा सामने लाती हैं । महेश की दुनिया संवेदनाओं की दुनिया है । ये कहानियां एकरस नहीं हैं । उनके वाक्य कहानी को संशय, तनाव, त्रासदी, स्थिति के जरिए सहज रूप में रखते हैं । वाक्यों की बनावट को समझे बिना महेश की कहानी के विचार को परखना कठिन है । महेश की टकराहट इसके कथानक में भी है, पात्रों की मानसिकता में भी है और वह सामाजिक संदर्भ को खोलती भी है । उसकी किसी भी कहानी में आपको समाज से अलग व्यक्ति का चेहरा नहीं मिलेगा । अंतर्विरोध की अनेक परतें भी उनके यहां मिलती हैं । --विष्णु चंद्र शर्मा
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