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Dusari Hindi
संकलित कविताओं में एक ताज़गी, नयापन और सहजता है, मौटे तौर पर । लगभग सभी लेखक मशहूर टाइप नहीं हैं । दरअसल, कुछ कवितायें तो यह अहसास करवाती हैं जैसे हमने किसी ख़ज़ाने को हाथ लगा लिया हो । कवि–जीवन का प्रारम्भिक भोलापन और सतर्कता–हीनता यहाँ मौजूद है । नए समाज–संदर्भ हैंय नए रूपक और अन्य काव्य–उपकरण हैंय दुर्लभ संप्रेषणीयता और पठनीयता है । यहाँ हिन्दी कविता एक अनजानी–सी दुनिया में प्रवेश करती लगती है, जो प्रचलित साहित्यिक शोर–शराबे से बाहर की चीज़ लगती हैय कहीं यह मुक्तिबोध की उस परंपरा से आगे की कविता भी प्रतीत होती है, जो समकालीन कविता पर हावी रही है । यही दूसरी हिन्दी है, जो बरसों से मुख्य हिन्दी कविता के पीछे चुपचाप और विनम्रता से खड़ी थी और जिसे निर्मला गर्ग ने मंच पर खड़ा कर दिया है । इस संकलन में मुसलिम–आदिवासी पृष्ठभूमि और अहिंदीभाषी प्रदेशों से आने वाले कवि अच्छी संख्या में हैंय जिन्हें पढ़ कर हम अब तक की अपनी अज्ञानता पर शर्मसार हो सकते हैं । -सत्यपाल सहगल
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