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Ghananand Ka Shrangar Kavye
कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं, जिनका दूसरा संस्करण नहीं होता । कारण है, पुस्तक के पाठक का अभाव । जो पुस्तक देश–विदेश के अतिविशिष्ट ग्रंथालयों, विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में समादृत हो, उसका दूसरा संस्करण 41 वर्ष बाद हो रहा है, ऐसा क्यों ? हिन्दी वालों की नादिरशाही । ‘आनन्द घन और उनकी रचनाओं के प्रथम संकलनकर्ता ब्रजनाथ, उनका कवि से सम्बन्ध, उनके जीवन–मरण और काव्य–मर्म को प्रस्तुत करते हुए आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने घनानन्द ग्रन्थावली का प्रकाशन 1952 ई– में वाणी वितान्त वाराणसी से किया । उससे पहले के ग्रन्थों में आनन्दघन की हत्या नादिर शाह द्वारा बतायी जाती थी । मिश्र जी ने इतिहास, साहित्य, जनश्रुति, चरितावली एवं साम्प्रदायिक साक्ष्य जुटाकर निष्कर्ष निकाला कि वृन्दावन में अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण के समय सन् 1760 के कत्लेआम में (1 से 6 मार्च तक) लुटेरे सैनिकों के द्वारा आनन्दघन का व/ा किया गया । निम्बार्क सम्प्रदाय के सा/ाक वृन्दावन दास के छन्दों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करते आचार्य मिश्र लिखते हैंµ‘‘आनन्दघन जी की हत्या का प्रत्यक्षदर्शी यह महात्मा जो कुछ कह रहा है उसे अब सत्य मानकर हिन्दी वालों को अपनी ‘नादिरशाही’ त्याग देनी चाहिए ।’’ सन् 1975 में प्रकाशित पुस्तक की ओर हिन्दी वाले नादिरशाहों का ध्यान तब गया जब आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ओरिएंटल इंस्टिट्यूट के इमरेबंधा को कलकत्ता नेशनल लाइब्रेरी में मैकमिलन से प्रकाशित मेरी दो पुस्तकें मिलीं । मेरी पुस्तकें विदेशों में गयीं । मुझे भी उनके कारण जाना पड़ा । उम्मीद है इकतालीस वर्ष बाद इसका प्रकाशित दूसरे संस्करण का अवश्य स्वागत होगा । -रामदेव शुक्ल
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