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Ghar Wapsi
पिछले कुछ वर्षों से ऐसा संयोग रहा कि दलित मुद्दे मुझसे इस कदर टकराते रहे कि एक के बाद एक कई नाटक क्रम में लिख डाले । बीच-बीच में कुछ और सब्जेक्ट पर भी लिखा पर लोगों का ध्यान दलित सवाल पर ही अटका रहाए जिसके आधार पर मेरे बारे कहना शुरू कर दिया कि मैं अब मार्क्सवादी लेखक के अपेक्षा अम्बेडकरवादी लेखक ज्यादा हो गया हूँ । ऐसा आरोप परंपरावादी लगाते तो बात समझ में आतीए मार्क्सवादी धारा से जुड़े लोगों के बीच से भी इस तरह की बुदबुदाहट आनी शुरू हो गयी तो दिमाग ठनका । पहले तो यही विचारने लगा कि क्या मेरा लेखन मार्क्सवाद विरोधी हो गया है घ् या विचार के स्तर पर कम्युनिजम से मेरा मोहभंग हो गया है घ् अगर उनकी बात मान भी ले कि मैं अम्बेकरवादी हो गया हूँ तो क्या अम्बेडकरवादी होनाए मार्क्सवाद विरोधी होना है घ् मार्क्स ने समाज को दो वर्गों में देखा है । अमीर और गरीबए यहीं दो वर्ग हमेशा से चला आ रहा है और किसी भी देश में समानता लाने के लिएए समाजवाद स्थापित करने के लिए वर्ग संघर्ष आवश्यक है । अम्बेडकर ने मार्क्स के वर्ग संघर्ष को कहीं से अवरुद्ध नहीं किया हैए बल्कि उसकी अगली कड़ी में वर्ण संघर्ष जोड़ दिया है । इस मुल्क की जो जमीन हैए उसका अंदाजा अम्बेडकर को था । इसलिए हज"ारों वर्षों से यहां के जड़ में वर्ण व्यवस्था हैए उस पर भी प्रहार करना जरूरी समझा । ऐसा नहीं है कि मार्क्स की नज़र से नस्लवाद ओझल था । वे नस्लए वर्ण की अवरुद्धता को अच्छी तरह से जानते थेए इसलिए मार्क्स ने भी इस पर तीखे हमले किये थे । अगर मार्क्स की कल्पना वर्गविहीन समाज है तो अम्बेडकर की वर्णविहीन समाज । -राजेश कुमार
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