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Gili Chhatri

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2017
978-93-87145-04-7

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अपनी दुनिया से बाहर निकली, तो एक कड़वा सच सामने खड़ा था । लड़कियों की जिंदगी आसान नहीं थी । मेरे वक्त में मध्यवर्ग की लड़कियां कॉलेज जाती थीं ताकि उन्हें ठीक–सा पति मिल सके । बहुत कम थीं, जो अपना कॅरियर बनाने के लिए पढ़ रही थीं । इसलिए तो आज भी अपने स्कूल–कॉलेज की कई मित्रों को फेसबुक पर ढूंढ नहीं पाती । अपना नाम बदल पता नहीं किस दुनिया में खो गई हैं । पत्रकार बनी तो इस दुनिया को और भी करीब से जानने का मौका मिला । मुंबई में लोकल ट्रेन में आते–जाते लेडीज डिब्बे में रोज ही ऐसी लड़कियों से मुलाकात हो जाती, जो घर–बाहर की तमाम विपरीत स्थितियों को झेलती हुर्इं अपने लिए रास्ता बना रही थीं । ‘गीली छतरी’ का फिरंगी, मैंने उसे दसेक साल पहले पुष्कर में देखा था । एक बारह–तेरह साल की लड़की के साथ घूमते हुए । मैं तो वापस दिल्ली चली आई, पर वह लड़की जहन में रह गई । यह सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते कि हंसती–मुस्कुराती मांग में सिंदूर भर कर इठलाती बालिका दरअसल एक सेक्स स्लेव है । मुंबई में ही एक बार लोकल ट्रेन में रात को सफर करते समय एक अधेड़ औरत मिली थी । - इस पुस्तक से..

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