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Harishankar Parsai Ka Vyang Sahitya

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2014
978-93-82821-41-0

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हरिशंकर परसाई का व्यंग्य साहित्य अपने समय और समाज का जीवंत दस्तावेज़ है । वे कालजीवी होने साथ–साथ कालजयी रचनाकार भी हैं । आज भी उनका साहित्य उतना ही प्रासंगिक और प्रभावपूर्ण है, जितना अपने लेखन काल में था । उनके साहित्य में देश का समकालीन इतिहास, सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक परिवेश अपने सम्पूर्ण घटना–क्रम के साथ उपस्थित है । भारत ही नहीं वहाँ विश्व–परिदृश्य भी है । व्यंग्य की कलात्मक ऊँचाई और गंभीर प्रभावपूर्ण प्रयोग में परसाई अद्वितीय हैं । उनका साहित्य युवा साहित्यकारों का मार्गदर्शन ही नहीं करता अपितु उन्हें पाठकों से सम्बद्ध होने की प्रेरणा भी देता है । सार्थक साहित्य की लोकप्रियता के वे प्रतिमान है । उनकी रचनाओं की विविधता अनुकरणीय है । जीवन और समाज का शायद ही कोई पक्ष हो जिसपर उनकी दृष्टि नहीं गयी हो । परसाई को इग्नोर करके आप आधुनिक हिन्दी साहित्य का अध्ययन नहीं कर सकते हैं । परसाई को उनकी रचनात्मक ऊर्जा और तेजस्विता के लिए हमेशा याद किया जाएगा । उनकी दृष्टि विसंगति का अवलोकन ही नहीं करती बल्कि उसके उन्मूलन की प्रेरणा भी देती है । उनमें गजब का आत्मविश्वास है जो जन–प्रतिबद्धता से ही सम्भव है । राजनीति पर उन्होंने सर्वाधिक लिखा है । उनका मानना है किµ“मुक्ति अकेले की नहीं होती” । वे व्यंग्य विधा की शक्ति और क्षमता के साक्षात उदाहरण है । व्यंग्य को कलात्मक और गम्भीर साहित्य की श्रेणी में लाकर खड़ा करने में परसाई की महत्वपूर्ण भूमिका है । वे सच्चे अर्थों में प्रगतिशील एवं आधुनिक लेखक हैं । नयी पीढ़ी में वे अनिवार्य रूप से पढ़े जाने चाहिए । वर्तमान समय में हम जिन समस्याओं को लेकर निरन्तर विमर्श कर रहे हैं उनके जवाब भी परसाई के पास उपलब्ध हैं । इस पुस्तक में परसाई की विचारधारा एवं कला को विभिन्न सन्दर्भों में परखने का प्रयास है ।

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