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Hindi Bhasha Ke Badhte Charan
जब हम हिन्दी के आरम्भ की बात करते हैं तो सातवीं सदी के मध्य से इसकी स्वीकृति होती है । किन्तु वास्तव में हिन्दी के अस्तित्व में आने का सही समय 1000 ई– ही स्वीकारा जाता है । सातवीं सदी से 1000 ई– के मध्य का साहित्य मुख्यत% अपभ्रंश भाषा में विरचित है । इसलिए उसे हिन्दी साहित्य की आधारशिला या पृष्ठभूमि कहना ही उचित प्रतीत होता है । इस तरह लगभग 1000 वर्ष से हिन्दी भाषा एवं साहित्य इतिहास का दसवाँ भाग, जिस पर हम विगत सौ वर्ष की हिन्दी के रूप में विचार कर रहे हैं, खड़ी बोली हिन्दी का ही इतिहास है । हालाँकि प्रारम्भिक दो युगों में तथा छायावादी युग में भी ब्रजभषा के माध्यम से साहित्य सृजन समानान्तर चलता रहा, किन्तु मुख्य रूप से साहित्य भाषा खड़ी बोली हिन्दी ही रही । हम हिन्दी साहित्य के इतिहास को आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल एवं आधुनिक काल में विभक्त करते हैं तो विगत सौ वर्षों की हिन्दी में केवल आधुनिक काल की हिन्दी पर ही विचार करते हैं । इस सौ वर्षों के हिन्दी–इतिहास की भाषा खड़ी बोली हिन्दी है और इसकी लिपि देवनागरी लिपि है । आधुनिक काल में आकर हिन्दी भाषा और साहित्य का जो नवोन्मेष हुआ उसमें देशकाल तथा युग की परिस्थितियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी । राजनीतिक कारणों से सन् 1857 के प्रबल विद्रोह को, स्वतन्त्रता संग्राम को, स्वतन्त्रता सेनानियों के वीर गति प्राप्त करने की घटनाओं को, महारानी विक्टोरिया के आगमन को, इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना को, सन् 1920 में कांग्रेस की बागडोर गांधी जी के हाथ चले जाने को, असहयोग आन्दोलन को, मुस्लिम लीग की स्थापना को, सन् 1930 के साम्प्रदायिक दंगों को, 1942 के कांग्रेस द्वारा पास किए गए ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव को सन् 1946 में हुए ‘अन्तरिम सरकार’ के गठन को तथा 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुई देश की स्वतंत्रता को भुलाया नहीं जा सकता । हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में इन घटनाओं की अपनी–अपनी सीधी या प्रकारांतर से रचनात्मक भूमिका रही है ।
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