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Hindi Dalit Rangmanch Ki Dastak

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2022
978-81-953984-8-5

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दलित रंगभूमि ने विशेष अभियान के साथ दलित–जीवन को बचाने की सार्थक पहल आरंभ की । उसने दोहरे दायित्व के निर्वाह का परिचय देना शुरु किया । दलित रंगमंच ने एक ओर दलितों के ‘क्षरण’ के विरुद्ध नारा बुलंद किया तो दूसरी ओर उनकी रक्षा का आंदोलन खड़ा किया । कहना गलत नहीं होगा कि उत्तरी भारत में या महाराष्ट्र के साथ अन्य राज्यों की जमीन पर दलित रंगभूमि ने लोकरक्षण का सबसे सशक्त कार्य किया । जितना भी दलित नाट्य साहित्य रंगमंच पर प्रस्तुत हुआ, सबका सब लोकरक्षण के दायित्व से परिपूर्ण दिखाई पड़ता है अर्थात् दलित समाज को अन्याय से बचाने, उसके स्वाभिमान को जगाने और उसमें चेतना जाग्रत करने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य का श्रेय दलित रंगमंच को ही है । दलित नाट्यकार चाहे मंच पर हो या सड़क पर, वह अपनी बात बेबाकी से कहता रहा है । संवाद अदायगी उसका कोई शगल नहीं, आंदोलन का ही एक हिस्सा है । संवाद के हर एक शब्द में आक्रोश की आंच का ताप होता है । यह भी अध्ययन में देखने में आया कि प्रस्थापित सनातनी नाटकों की परंपरा ने, दलित नायक को, उसके जीवन–संघर्ष को कभी नायकत्व नहीं दिया । कुछ प्रगतिशील सवर्ण नाटककारों ने थोड़ा प्रयास किया पर वे भी दलित जीवन को समझ नहीं पाए तो उसके संघर्ष, उत्थान, परिवर्तन की बात गंभीरतापूर्वक अपने नाटकों में वह कैसे रख पाते ? सिर्फ दलित जीवन को दर्शाना, लेखक की जिम्मेदारी नहीं है । इससे आप सिर्फ उसके चरित्र पर उंगली उठा सकते हैं । उसके प्रति सहानुभूति भी दर्शा सकते हैं । पर यह उसके प्रति न्याय नहीं । अमूनन देखा गया है कि दलितों के चरित्र को तोड़–मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता रहा है ।

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