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Hum Bache Rahenge
युवा कवि विमलेश त्रिपाठी की कविताएँ जब–तब पत्रिकाओं में पढ़ता रहा हूँ । पर यहाँ भरी–पूरी किताब की शक्ल में उन्हें जानने और उनके भीतर से उभरती हुई एक सुपरिचित–सी दुनिया से गुजरने का अवसर पहली बार मिला । ‘हम बचे रहेंगे’µयह कवि का पहला काव्य–संकलन है । पर यहाँ प्रत्याशित पहलेपन के साथ बहुत कुछ ऐसा है, जो अप्रत्याशित है और अनुभव से दीस भी । इस उखड़ती साँस जैसे समय में यहाँ अब भी बचा हुआ यकीन है और एक ‘उठा हुआ हाथ’ जिसका सपना मरा नहीं है । अपने आस–पास की छोटी–छोटी छूटी हुई चीजों को अपने साथ लिये–दिये चलने वाली और उनके भीतर के मर्म को निहायत अनाटकीय ढंग से पकड़ने वाली ये कविताएँ हमें रोकती–टोकती हैं और एक जानती–पहचानती भाषा में हमसे बोलती–बतियाती हैं । यही इस युवा कवि की वह विशेषता है जो उसके भविष्य के प्रति हमें आश्वस्त करती है । इन कविताओं के एक अन्य चरित्र लक्षण ने भी ध्यान आकृष्ट किया । वह है इनकी गहरी स्थानीयताµ किसी आँचलिक अर्थ में नहींµबल्कि अच्छी कविता के सहज गुण /ार्म के रूप में स्थानीयता । यों तो यह बात पूरे संग्रह में देखी जा सकती है । पर मेरे जैसे पाठक ने उसे सबसे पहले लक्ष्य किया इस कवि के भाषिक व्यवहार में । भोजपुरिया क्षेत्र से आने वाले इस कवि के भाषा–शिल्प में मुझे अनेक ऐसे शब्द मिले जिनसे लम्बे समय बाद मेरी भेंट हुई । ‘पाम्ही’ और ‘हम बचे रहेंगे’ एक युवा कवि का प्रथम संग्रह होने के बावजूद एक प्रौढ़ता का आभास देने वाला संग्रह है । मुझे विश्वास हैµयह किताब अपने अभीष्ट पाठक तक पहुँचने में सफल होगी और अपने प्रकाशक ‘नयी किताब’ की व्यंजना को एक नयी अर्थवत्ता प्रदान करेगी । -केदारनाथ सिंह
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