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Indradhanush Satranga
“विभिन्नताओं को एक सूत्र में बाँधना थोड़ा कठिन अवश्य है, पर उतना भी नहीं जितना हम समझते हैं । बहुत छोटी–छोटी बातें होती हैं, जो हमें आपस में जोड़ती हैं । आपस का उठना–बैठना, बातचीत, हास–परिहास, आपद्–विपद् में साथ खड़े होना––यह सारी बातें लगती तो छोटी हैं, पर यही वे चीज़ें हैं जो एकता की अट्टालिका को गगनचुंबी बनाती हैं । लेकिन ध्यान रहे, यह ऐसी पहरेदारी है, जिसमें सदैव जागते रहना पड़ता है । इन्हीं छोटी–छोटी बातों में छिपकर स्वार्थ का चोर घुसपैठ करता है । हमें पता ही नहीं लगता कि कब और किसके सहारे यह चोर हमारी एकता में सेंध लगाकर ख़ुशियों का ख़ज़ाना लूट ले गया । असावधानी के इन्हीं क्षणों में कुछ लोग हमारी सहानुभूति, हमारे प्रेम और हमारी निश्छलता का लाभ उठाकर हमें पथभ्रष्ट करते हैं । पहले हमारे शत्रु सात समंदर पार से आए थे । अपनी बोली–बानी, धर्म और वर्ण से पहचाने जाते थे । पर आज वे अपने ही बीच के हैं । उनकी पहचान करना अधिक कठिन है ।” -इसी पुस्तक से
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