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Jack London: Chuni Hui Kahaniyan
सल्फर की खाड़ी का अनुभवी बूढ़ा सही था । उसे उस निराशा भरे क्षण में याद आया कि पचास के नीचे तापमान पर सहयात्री का होना हितकर रहता है । उसने अपने हाथों को पूरी ताक’त से फिर से चलाना शुरू किया, किन्तु उनके सुन्नपन में कोई कमी नहीं आई । यह देख उसने दांतों से दोनों दस्ताने खींच कर उतारे । हथेलियों के पिछले भाग से उसने बर्फ’’ में पड़ी माचिस को पकड़ा । उसके हाथों की मांसपेशियाँ अभी हिमाघात से बची थीं, इसलिए उसके हाथ माचिस के पत्ते को पकड़े रहने में सफल रहे । फिर उसने तीलियों का पूरा पत्ता पैरों पर घिसना शुरू कर दिया । वे जल उठीं, सत्तर–की–सत्तर गंधक भरी तीलियाँ एक साथ । लौ को बुझाने के लिए वहाँ हवा थी ही नहीं । जलती गंधक की गंध से बचने के लिए उसने अपने सिर को दूसरी ओर घुमा लिया और जलती तीलियों को छाल के पास ले गया । जब वह यह कर रहा था तब अपने हाथों में चेतना की सनसनी लौटती महसूस की । उसका मांस जल रहा था, वह सूंघ सकता था । अपने भीतर वह कहीं अनुभव कर रहा था । चेतना दर्द में परिवर्तित हुई और फिर दर्द असह्य होने लगा । दर्द के बाद भी वह उसे सहता रहा, क्योंकि जलती तीलियों से अभी बर्च की छाल ने आग नहीं पकड़ी थी, क्योंकि छाल और आग की लौ के बीच उसका अपना जलता हाथ था, जो ज्यादातर लौ को घेरे था । ---इसी पुस्तक से
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