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Jatiyan Rashtriya Vimarsh Evam Ramvilash Sharma

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2019
978-93-87187-67-2

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जाति की अवधारणा का विकास मूलत माकर््सवादी सामाजिक विकास के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । स्टालिन ने जाति की परिभाषा के क्रम में उसके महत्वपूर्ण लक्षणों में सामान्य आवास भूमि, सामान्य संस्कृति, सामान्य भाषा तथा सामान्य ऐतिहासिक परम्परा को शामिल किया है । जातियाँ आधुनिक पूँजीवादी विकास की देन हैं । उपर्युक्त कारकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, भाषा जो किसी जाति की आत्मिक संस्कृति और जातीय आत्मचेतना का सर्वाधिक जीवंत अभिलक्षण होती है । वह संस्कृति की प्रतिच्छाया और मानवीय चेतना का विधायक तत्व होने के कारण जाति की सांस्कृतिक पहचान का सूचक बन जाती है । प्रचार–प्रसार को लेते हैं । हिंदी का विकास हिंदी जाति के भविष्य और वर्तमान से जुड़ा मसला है । इसके लिए हिंदी जाति के सांस्कृतिक इतिहास की समझ होनी भी आवश्यक है । अपने विशाल लेखकीय अवदान में हिंदी जाति की सांस्कृतिक– ऐतिहासिक रूप रेखा प्रस्तुत कर वे हिंदी जाति के अस्तित्व और अस्मिता की एक मजबूत नींव रखते हैं । उनकी पूरी चिंता हिंदी जाति की अवधारणा को एक सामाजिक आंदोलन बनाने के केन्द्र के इर्द–गिर्द घूमती है । इस प्रक्रिया का विरोध सामंती और साम्राज्यवादी शक्तियाँ विभेद को बढ़ाकर और जनतांत्रिक चेतना को कमजोर करके करना चाहती हैं । - इसी पुस्तक से

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