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Jindagi Ke Avshesh Matra
'जिंदगी के अवशेष मात्र' शिवकुमार यादव का पाँचवा कहानी-संग्रह है। इस संग्रह की कहानियाँ कहानीकार के व्यापक अनुभव संसार और समकालीन जनजीवन के संकटों और समस्याओं को आधार बनाकर रची गयी हैं। 'भविष्य-निधि', 'जिंदगी के अवशेष मात्र', 'दर्दनाक' और 'एक चोर की प्रेम कहानी' जैसी कुछ कहानियाँ शहरी निम्नवर्गीय और मध्यवर्गीय समाज की हैं। कुछ कहानियाँ ग्रामीण पृष्ठभूमि की भी हैं। इनमें समकालीन भारतीय समाज की कई परतें मौजूद हैं। भोजपुर के ग्रामीण समाज, विशेषकर निम्नवर्गीय दलित-पिछड़े-वंचित समुदाय की जिंदगी की हकीकत को शिवकुमार यादव ने पिछले संग्रहों की कई कहानियों में दर्ज किया है। इस संग्रह की 'मुसहर टोली का शुद्धिकरण', 'धंधा', 'कुश्ती' और 'दस्तावेज' जैसी कहानियाँ भी इसी ग्रामीण पृष्ठभूमि की कहानियाँ हैं, जिनमें ऊंची जातियों का राजनीतिक वर्चस्व, बेरोजगारी, किसानों का अपेक्षाकृत समृद्ध अतीत और तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद स्त्री पहचान का उभरता हुआ सवाल मौजूद है। सच तो यह है कि पुराना सामंती समाज हो या मौजूदा पूंजीवादी समाज स्त्रियाँ प्रायः आखेट ही समझी जाती हैं। विभिन्न संस्थाओं के शीर्ष पर बैठा पुरुष स्त्रियों को भोग्या ही समझता है। उनकी काबलियत के आधार पर उन्हें आगे बढने के अवसर नहीं दिये जाते, बल्कि देह समर्पण को सफलता का पैमाना बना दिया जाता है। 'कुश्ती' जिसमें स्त्री-पहलवानों के आंदोलन की छाया देखी जा सकती है, उसी सचाई को दर्शाती है।
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