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Jindgi Ka Pahiya
किताबें लिखी जाती हैंय यह किताब लिखी नहीं गई है । यह किताब हमें उस किताब तक पहुंचाने का काम भर करती है जिसे इंसान रोज–रोज लिखते हुए, अपनी जिंदगी जीता है । इसलिए यह उस अर्थ में किताब नहीं है जिस अर्थ में हम किताबों को पहचानते हैंय और इसलिए यह दूसरी किसी भी किताब से ज्यादा कीमती है क्योंकि यह अपने भीतर कितनी ही किताबों को समेटे है । उपन्यास–सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जीवनी को नाम दिया गया थाड्ड कलम का सिपाही! इस किताब में जिन जीवनियों को आप पढें़गे, उन लेखकों को हम क्या नाम दे सकते हैं ?––– कलम के मजदूर! देश की राजधानी दिल्ली में और इसके आसपास के इलाकों में कलम के ये मजदूर आपको हर कहीं मिल जाएंगे । इनके पास कलम हो, जरूरी नहींय इन्हें कलम चलानी आती ही हो, यह भी जरूरी नहींय लेकिन आपकी कलम में अगर काला पानी भर न भरा हो तो आप इनकी लिखी किताबों से कितनी ही किताबें बना सकते हैं! यह किताब ऐसे ही बनी है । नगरों–महानगरों में परिवहन के साधनों पर और उनसे जुड़ी समस्याओं पर लंबे अरसे से काम कर रहे राजेंद्र रवि और उनके साथियों ने हमारे सामने कितनी ही ऐसी किताबें रखी हैं जो हमारे बीच, हमारी आंखों के सामने ही लिखी जा रही थीं लेकिन जिन्हें हम तब पढ़ नहीं पा रहे थेय तब जिनके बारे में हम निरक्षर थे । इन किताबों को पढ़ने के बाद ही यह अहसास हुआ कि साक्षर होना भी कितना निरर्थक हो सकता हैय और यह भी कि जो निरक्षर है वह हमारी तरह निरर्थक भी हो, यह जरूरी नहीं है । -राजेन्द्र रवि
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