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Kaafila Sath Aur Safar Tanha

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2017
978-93-85450-71-6

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वंदना शुक्ल के दूसरे कथा–संकलन क़ाफिला साथ और सफर तन्हा की कहानियाँ हमारे समय के यथार्थ का विस्तार प्रस्तुत करती हैं । स्मृतिहीनता के इस भयावह दौर में ये कहानियाँ स्मृतियों की राह पकड़ अपने पाठकों को वर्तमान की यात्रा पर ले चलती हैं । इन कहानियों में समय एक पात्र की तरह उपजता है और कभी अपनी समग्र मुखरता के साथ, तो कभी नित्तान्त अदृश्य रह कर केन्द्रीय भूमि‍का का निर्वाह करता है । वंदना शुक्ल एक सधे हुए कि’स्सागो की तरह गल्प रचते हुए विचार, अनुभूति और संवेदना के महीन धागों से जीवन को बुनती हैं । इस संकलन की कहानियाँ जीवन के आसंग में समय के बीहड़ में उतरती हैं और अतीत बन चुके लोगों, वर्तमान में बदहवास भागते लोगों और भविष्य की काँपती छायाओं को छूने की लालसा में ठिठके लोगों का आख्यान प्रस्तुत करती हैं । इन कहानियों में वंदना शुक्ल नाटकीयता का उपयोग एक कथा–युक्ति की तरह करती हैं, पर इस नाटकीयता में एक गहरी संलग्नता है, जो पाठक की बाँह गहे चलती है और वह बिना किसी अतिरेक के अपने लिए सच का पुनराविष्कार करता है । ‘खेल’ जैसी कहानी इसका साक्ष्ये है । संकलन की शीर्षक–कथा हिंसक होते हमारे समय और हमारी राजनीति‍क व्यवस्थाओं के बीच लहूलुहान जीवन का आर्त्तनाद बन कर उभरती है । धूसर और रेतीले राजस्थान की हवेलियों की बाँदी रिसाल, हरीतिमा से आच्छादित कश्मीर की वादियों में पलने वाली जेनी और पेडोमीटर की मिसेज शर्मा जैसी स्त्रियों को रचते हुए वंदना शुक्ल संवेदनशीलता के साथ स्त्री–जीवन के मर्म को उकेरती हैं । यह कथा–संकलन अपने समकालीनों के बीच लेखिका को अलग पहचान देता है । हृषीकेश सुलभ सुप्रसिद्ध कथाकार/ नाटककार/ समीक्षक

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