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Kah Do Na

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2019
978-93-87187-60-3

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जि़ंदगी कई बार नए रास्ते आपके लिए अचानक खोल देती है । ऐसा लगता है कि उस रास्ते पर आपकी यात्रा पहले से नियत थी । ऐसा क्यों होता है इस पर मतों में भिन्नता हो सकती है । लेकिन यह जब जिसके साथ होता है उसे इसे समझने में थोड़ा वक्त लगता है । कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी चैदह साल पहले हुआ । मुझे आश्चर्य होता था कि किसी एक विषय पर इतने सारे गीत मुंबईया फिल्मों में लिखे जाते है, लेकिन शायद ही कभी दो गीत सुनने में एक जैसे लगते हैं । गीत लिखना मुझे बहुत ही कठिन लगता था । लेकिन एक दिन अचानक हमसे गीत लिखा गया । उस दिन पता चला कि गीत लिखना कितना आसान है । यह भी समझ आया कि गीत–कविता हृदय की चीज है । दिल, हृदय जो भी कहिए इसे, धड़कता लगातार है यह, और हर नई धड़कन कुछ नया कहती है । तो दिल से निकली कविता तो हर बार नई होगी न । इस संग्रह में आप को चार स्वाद मिलेंगे । पहला वह जो आजकल बंबईया फिल्मों में लिखा जा रहा है । नए शब्द, नई स्पीड के साथ आपको कुछ अच्छा फील देंगे । दूसरा स्वाद वह है जो आपको कुछ चखा चखा सा लगेगा । जो कुछ भी पहले अच्छा आपने सुना है, उन्हीं कुछ शब्दों को लेकर नए अंदाज़ में आगे बढ़ते हुये आज के दौर में कुछ नया कहने की कोशिश है । उम्मीद है आप को स्वादिष्ट लगेगा । इस भाग को हमने नाम ‘सिलसिला’ दिया है । जगजीत सिंह साहब जब से गज़ल को छोड़ गए, तब से गज़ल वहीं ठहरी हुई है । ‘शेर ओ शायरी’ में हमने कोशिश की है कि आज के शब्द, आज की सोच को साथ लेकर गज़ल कही जाये, जो पढ़ने पर आज की स्पीड का अहसास कराये । आखिरी स्वाद सूफि’याना का है जहाँ आपको मुहब्बत को एक्सप्रेस करने के नए शब्द, नए ख्वाब दिखेंगे । ये इश्क ख़्ाुदा, आपके हमसफर से रूबरू कराएगा । --नीतीश्वर

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कह दो ना, पद्य की बिल्कुल नई विधा है। पढ़ने के बाद ऐसा लगता है जैसे कवि ने यह पंक्तियाँ आपके लिये ही लिखी है। हर उम्र के लिए फिट इन कविताओं में गोते लगाते हुए अपने इश्क़, मुश्क और गुनगुनाहट को साधने के औजार है।
Rohit Kumar, Ballia