- New product
प्रत्येक 100 रुपये की खरीदारी पर 2 अंक अर्जित करें | 1 अंक= Rs. 1
Kala Vinod
तीन दशक पहले प्रकाशित यह पुस्तक बरसों से मिल नहीं रही थी जबकि इसमें संकलित सामग्री में रुचि बढ़ती गयी है। हिन्दी में कलाओं पर पठनीय सामग्री का वैसे भी व्यापक अभाव रहा है। संगीत, ललित कला, रंगमंच के कई मूर्धन्यों से बातचीत का यह अन्तरंग वितान उनके कृतित्व के कई पहलू रौशन करता और इन विधाओं के बारे में नयी विचारोत्तेजना उकसाता | राजा पुस्तक माला के अन्तर्गत कई पुरानी अनुपलब्ध पुस्तकों के प्रकाशन की कड़ी में यह पुस्तक प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है। -अशोक वाजपेयी
You might also like
Reviews
No Reviews found.