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Kathalochan Ke Naye Pratiman

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2016
978-93-82554-00-4

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मधुमक्खियां फूलों को कभी डंक नहीं भारती बिना फूलों को विव्यस्त किये थे उनसे यह निकाल लेती है जो कि उन्हें चाहिए। आलोच्य कृतियों के साथ मेरा वर्ताय कुछ ऐसा ही रहा है। विचारधारा की फौज में मंत्रय कवायद (लेफ्ट-राइट) करने से बेहतर है कि विचारों की दासता की जाए उनकी सेवा की जाए। और हम नयों में देखते है? कहानियों में हम जीवन के बनते-बिगड़ते तात्पयों को देखते हैं। हम उन तात्पयों की अभिधा और व्यंजना से गहरे आन्दोलित होते हैं। फिर उन्हें हम अपने तात्पयों के साथ मनाते हैं। इस प्रकार हम कहानियां पढ़ते हुए तात्पयों की कलात्मक एकतानता की मढ़ते हैं जिसे पाठानुभूति कहते हैं। रास्ता किसी को घर नहीं पहुंचाता, रास्ते पर चलकर घर पहुंचना होता है। कहना यही है कि एक बहुमात्रिक अर्थवत "साइन' (शब्द) किसी 'कह दिये गये' के कॉफिन बॉक्स में निष्प्राण लेटा नहीं होता--सदैव संजीवित रहने की अदम्य आकांक्षा लिए प्रति बार वह सिग्नीफाइड, (संकेतायन) के आत्मीय संस्पर्श को ढूंढ़ता है। संक्षेप में, पाठकों से जबरदस्त और स्नेहिल हस्तक्षेप की मांग करता है।

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