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Kavita Ka Loktantra
औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप जीवन में सामूहिकता का विनाश हुआ और बढ़ती भीड़ के बावजूद एकाकीपन और अलगाव का एहसास गहराता गया । अपनी सार्थकता को रेखांकित करने में कवि ने व्यक्तिवाद का सहारा लिया जो काव्य में आहत आत्म–संवाद तक सीमित रह गया । प्रसिद्ध साहित्य–चिन्तक कॉडवेल के अनुसार औद्योगिक क्रान्ति के बाद गीत ही प्रतिनिधि काव्य–विधा हो सकता था जिसमें अनिवार्यत% अवसाद ही स्थायी भाव बनता । चूँकि वैदिक जीवन सामूहिक था इसलिए वैदिक ऋचाओं में आशा, आह्लाद, बहिर्मुखता और जुझारूपन है । किन्तु, चूँकि आधुनिक कवि एकाकी एवं निर्वासित है, उसके गीतों तथा नवगीत में अद्भुत साम्यता मिलेगी । केवल प्रगतिवादी गीत इससे बच सके थे, क्योंकि कवि अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के चलते आंदोलनों की सामूहिकता से जुड़ा था । तिवारी जी के पास कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं है । अत% अवसाद की परिव्याप्ति चतुर्दिक है । यदा–कदा वे प्रेम की केन्द्रीय अंतरंगता अथवा अतीत में पलायन करते हैं । ‘जलते शहर में’ यह प्रवृत्ति अधिक है, लेकिन ‘धूप कड़ी है’ में अंतरंग गुनगुनाहटों के स्वर कम ही सुनाई देते हैं । समय के साथ ‘शर्तनामे’ उनके ‘सफरनामे’ की सैलानियत पर भारी पड़ते गये हैं । अर्थात्, आधुनिकता–बोध गहराता गया है और उसी के साथ दुर्निवार पीड़ादायक स्थितियों की सार्वभौम शक्तिमत्ता का एहसास भी ।
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