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Khirkiyan Jharokhen Aur Ladkiya
प्रो रंजना अरगड़े हमारे समय की शिनाख्त करने वाली महत्वपूर्ण आलोचक तो हैं ही, लेकिन वह जीवन विवेक को प्रतिष्ठित करने के लिए समांतर रूप से सक्रिय एक संवेदनशील कवि भी हैं । ये कविताएं जीवन की गहरी अनुभूतियों से निकली हैं । इनमें पृथ्वी गहरी सांस लेती है, सूरज धड़कता है और सितारे लहरा रहे हैं । इसमें बारिश की रिमझिम फुहारे हैं और लगता है जैसे आसमान उमगकर कर अनेक रंगों में बहने लगा है । इन कविताओं के साथ चलने पर अनेक रंगों के सपने दिख जाते हैं जिनमें ‘मां के गात में बदलती हुई लड़कियां’ हैं, ‘विवश प्रेमी’ हैं और उनकी अनिर्वचनीयताएं हैंय बार बार इन पंक्तियों में ऐसे उत्कट अनुभवों की जगह भी खुलती जाती है जहाँ से एक संवेदनशील स्त्रीमन ही पार जाता हुआ दिखता है–––यहां शब्द अपनी सुकुमार आपसदारी में बँट कर कुछ अलग और अनूठे अपनत्व के पीछे चलते प्रतीत होते हैं । शब्दों का यह सारा रचाव एक सजीव सपने की अभिव्यंजना करता है जो इन कविताओं की पंक्तियों में फैल कर जीवन के यथार्थ को छू रहा है । अच्छी कविता बेठोस, अलभ्य और तरल साँकलों की खटखटाहट से भी पैदा होती है । कभी–कभी इन खटखटाहटों से हिंदी कविता के ऐसे दरवाज़े भी खुल जाते हैं जो दशकों से बंद हैं । इन कविताओं के सामने आने पर संवेदना की ताज़ा हवा अग़ल बग़ल से गुजर जाती है । इसलिए मुझे विश्वास है कि यह बहुत सुंदर और मर्मी संग्रह सिद्ध होगा । —प्रो. आनन्द कुमार सिंह
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