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Kotilya Ka Lok Prashasan
कौटिल्य अर्थशास्त्र भारतीय साहित्य का प्रसिद्ध आर्षग्रन्थ है । एक ऐसा ग्रन्थ जिसमें भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और तत्कालीन लोक प्रशासनिक व्यवस्था का यथार्थ अंकित हुआ है । वस्तुत: यह साक्ष्य है प्राचीन भारत की सभ्यता के असाधरण उत्कर्ष का । यही कारण है कि अनेक विद्वानों ने समय–समय पर इस ग्रन्थ की गहन समीक्षा और विश्लेषण किया है और नि:सन्देह यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा । डॉ– देवेन्द्र प्रसाद राम राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक और अध्येता हैं । इन्होंने अपने गम्भीर शोध से इस कृति का बारीक विवेचन किया है । साथ ही, अधुनातन लोक प्रशासनिक व्यवस्था के समानान्तर उस युग के प्रशासनिक ढाँचे को समझने की विनम्र कोशिश भी की है । यही कारण है कि इस पुस्तक से गुजरते हुए पाठक के भीतर अपने गौरवशाली अतीत और असाधरण विरासत का अहसास गहरा होता है । एक ऐसा उत्कर्ष, जिसे देखकर दुनिया सदियों से विस्मित होती रही । निश्चय ही यह हमारी सभ्यता और संस्कृति की असाधरणता का एक पक्ष है-इकलौता नहीं । लोक प्रशासनिक व्यवस्था एक आधुनिक अवधारणा का यथार्थ रूप है । यह पुस्तक जब कौटिलीय अर्थशास्त्र के लोक प्रशासन के एक–एक पक्ष को बारीकी से हमारे सामने रखती है, तो हम यह सोचकर चकित रह जाते हैं कि लगभग दो हजार वर्ष पूर्व अपने काल–परिवेश की संगति में कौटिल्य ने कितनी अद्भुत, उन्नत और समग्र व्यवस्था को मूर्त्त किया था । लेखक की सहज भाषा और ईमानदार दृष्टि ने इस पुस्तक को न सिर्फ प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी उपयोगी और कौतूहलपूर्ण बना दिया है । हमें उम्म्मीद है पाठक इस कृति का अवश्य स्वागत करेंगे ।
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