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Kya Tum Roshani Bankar Aaogi Aarya?

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2016
978-81-908197-3-2

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प्रेम इस संसार का सबसे सुन्दर भाव और उत्कृष्ट जीवन मूल्य है । पर वह हर युग में अपने समय, अहं तथा लालसा से ग्रसित होता रहता है । प्रेम की तीव्र उत्कंठा कई बार मनुष्य को ‘रचनात्मक’ बना देती है तो कई बार गालिब के शब्दों में ‘निकम्मा’ भी बना देती है । लेकिन प्रेम पहले ‘आत्मसाक्षात्कार और आत्मसंघर्ष’ भी है । वह ईमानदारी, निष्ठा और पारदर्शिता की भाषा भी है । उसमें सुख–दुख में साझीदार होने, एक–दूसरे की सहायता करने का मैत्री भाव तथा दायित्व बोध भी है । ‘प्रेम’ एक ऐसा सुख है जो व्यक्ति के अन्त%स्थल को सिंचित करता है । उसमें ‘आत्मतुष्टि’ का भाव होता है, पर प्रेम ‘अ/िाग्रहण’ नहीं है । टैगोर के शब्दों में प्रेम व्यक्ति को बां/ाता नहीं मुक्त करता है । लेकिन प्रेम अक्सर सत्ता–विमर्श से संचालित होता है, जबकि वह सभ्यता विमर्श का अविभाज्य हिस्सा है । आ/ाुनिक और महानगरीय जीवन में प्रेम की दरकार व्यक्ति को बहुत है, पर वह कई तरह की वर्जनाओं मेें घिरा है । वह नदी की कल–कल छल–छल /ाारा है, पर कई बार आन्तरिक सेंसरशिप से भी बं/ाा है । हिन्दी के चर्चित कवि विमल कुमार ने इन कविताओं में आत्मसंघर्ष और आत्मसाक्षात्कार तो किया ही है, एक अमूर्त नायिका की खोज भी की है । उसमें याचना और गुहार भी की है । उनकी इन कविताओं में एक गहरी बेचैनी, छटपटाहट और उद्विग्नता भी देखी जा सकती है । इनमें जीने की गहरी ललक भी दिखाई देती है । इसमंे अपना प्रतिबिम्ब ढूंढने की भी चेष्टा है । वह प्रेम को सफलता और असफलता के चश्मे से नहीं देखते । उनके लिए प्रेम दरअसल आईना है, जिसमें व्यक्ति और समाज दोनों की तस्वीर दिखाई देती है । वह एक संवाद बनाने की प्रक्रिया है जो भूमंडलीकरण और बाजार के दौर में लगातार छिन्न–भिन्न होती जा रही है ।

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