• New product

Lok Aur Bhartendu Ka Rachna-Karm

(0.00) 0 Review(s) 
2019
Lok Aur Bhartendu Ka Rachna-Karm

Select Book Type

Earn 5 reward points on purchase of this book.
In stock

भारतेंदु हरिश्चन्द्र के वृहत्तर भारतीय समाज की दो प्रमुख पहचान, लोक एवं धर्म के अन्तरावलंबन को पाटने का रचनात्मक उपक्रम किया । इस प्रयास में उन्होंने साहित्य को अपना आधार बनाया था, लेकिन वह मात्र रसिकों और अभिजात–वर्ग के लिए शरणस्थली या शिकारगाह तक सीमित नहीं था, जैसा कि रीतिकालीन मानसिकता के तत्कालीन कवि उसे सीमित कर रहे थे । ऐसी दु%खद स्थिति में जहाँ साहित्य को केवल Üाृंगार, रस या आनंद–प्रदान करने वाला उपादान मान लिया गया था, वहाँ इस तथाकथित अभिजात वर्ग के बरक्स एक वृहत्तर लोक–वृत्त अपने आख्यानों, गेय पदों, नौटंकियों, भजन मंडलियों और धार्मिक कृतियों में डूबा हुआ था । दोनों ही ध्रुवों (शास्त्र आधारित एवं लोकाश्रित) में न तो कोई संवाद था, और आवाज़ाही के साधन भी जर्जर एवं अनुपयुक्त हो चुके थे । दूसरे शब्दों में लोकाश्रयी रचना–धारा (कीर्तन, पद, गीत, लोक–संगीत आदि) विपुल गति से प्रवाहित होते हुए भी अभिजात और शास्त्रानुमोदित–साहित्यिक तटबंधों का स्पर्श नहीं कर पा रही थी । इसके विपरीत अभिजात एवं शास्त्रीय मठाधीशों तथा साहित्यिक रसिकों को इस बात की कतई चिंता नहीं थी कि उनकी रचनाएँ व्यापक लोक–वृत्त तक पहुँच भी रही है, या नहीं । भारतेंदु, साहित्य और लोक की उस टूटी हुई कड़ी को जोड़ने के साथ–साथ जागरण के माध्यम से जो पुनरुत्थान–कार्य करते थे, वह कम–से–कम प्रगतिवाद तक के साहित्यकारों के लिए प्रेरणा–स्रोत बना रहा । भारतीय नवजागरण के अन्तर्गत समाज, संस्कृति, राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में किए गए सुधारात्मक कार्यों का प्रमुख माध्यम–कला है ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.