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Mati Mein Ugte Shabd

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2020
978-93-89191-32-5

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‘‘जीवन के झंझावातों से जूझते–जूझते पुराने दिनों को विस्मृत कर चुकी कुसुमा आज रह–रह कर चन्दर के बारे में क्यों सोच रही है ? कहाँ होगा उसका पति ? उसे छोड़कर क्यों चला गया––– ? मात्र दो वर्ष के वैवाहिक जीवन में पत्नी को छोड़कर ऐसे भला कोई जाता है क्या––– ? अनेक प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं, जिनके उत्तर वह चन्दर से जानना चाहती है । किन्तु चन्दर तो अब भूली–बिसरी बात हो गया है । यदि चन्दर कहीं होगा भी तो समय के इतने लम्बे अन्तराल के पश्चात् कैसा दिखता होगा ? कहाँ होगा––– ? कितना निर्दयी हो गया था चन्दर जिसे अपने बूढ़े पिता व नवजात बेटी की भी सुधि नहीं आयी । अनेक प्रश्न उसके समक्ष खड़े होते जा रहे हैं, जिनका उत्तर वह चन्दर से जानना चाहती है, किन्तु कब–––कहाँ–––कैसे? कहाँ है चन्दर? देर रात तक मन व्याकुल रहा । स्मृतियों के झूले में झूलते–झूलते न जाने कब नींद आ गयी । सुबह कुसुमा विलम्ब से उठी । शीघ्रता से घर के कार्यों को निपटाया । बिटिया को स्कूल भेजा–––’’ इसी पुस्तक से

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