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Maun Vedna Mukhar Samvedana
वैसे मैं तो ठहरी एक पशुचिकित्सक । बीमार जानवरों के शरीर का इलाज करनेवाली । लेकिन इलाज करते–करते मैं पशुओं के मन के रंग निरखने लगी । जानवरों के साथ जीनेवाले, जानवरों को इस्तेमाल करनेवाले और जानवरों के लिए काम करनेवाले कई अलग–अलग तरह के लोग मिलने लगे, तो जैसे अलीबाबा की गुफा खुल गई । रंगारंग खज“ानों से खचाखच भरी हुई । इनसान पर हमला करनेवाली शेरनी देखी, इनसानों को काटनेवाले बंदर भी देखे, राजनीति के लिए बंदरों का इस्तेमाल करनेवाले राजनेता भी देखे । और बंदरों से बिना किसी मतलब के प्यार करनेवाली सखुबाई से मिलना हुआ, हिरनों के विछोह से व्याकुल बंडगर से मुलाक’ात हुई । इन सबको निरखते–निरखते प्रकृति, पशु और मनुष्य के एक अनोखे आपसी रिश्ते का पता चलता गया । पेश कर रही हूँ उसी रिश्ते की खोज की ये कहानियाँ...
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