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Mere Vistar Ka Koi Ant Nahi
युद्ध हम सोचते हैं कि युद्ध अलग से आता है जब कि युद्ध हमारे साथ ही पैदा हो जाता है हमें आपत्ति है युद्ध के होने से युद्ध को कोई आपत्ति नहीं है हमारे होने से रोज हम युद्ध को किनारे करने जाते हैं और वह है कि हमें किनारे ठेलकर हमारे बीच आ जाता है एक दिन घबड़ाते हैं दो दिन सोच में पड़ जाते हैं फिर रातें और अँधेरी करने में जुट जाते हैं पड़ने वाली चोट का उपचार ढूँढकर रखते हैं घायल होंगे के बाद की मरहम पट्टियाँ जुटा कर रखते हैं ज्यों–ज्यों मरते हैं हम त्यों–त्यों अमर होता जाता है युद्ध ।
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