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Nirmal Varma : Pahchan Aur Parakh
निर्मल वर्मा सच्चे अर्थों में भारतीय ज्ञान–परम्परा के अद्वितीय चिन्तक रहे हैंय अपने जीवन काल में साहित्य के लगभग सभी श्रेष्ठ सम्मानों से समादृत एवं वैश्विक परिदृश्य पर चर्चित हिन्दी साहित्य का एक अकेला अप्रतिम सर्जक । बतौर एक गद्यकार और कथाकार हिन्दी में स्वाधीन जीवन जीनेवाला एक अनन्य साधक । स्वतंत्र भारत की आरम्भिक आधी से अधिक सदी उनकी लेखकीय उपस्थिति से गरिमांकित है । वर्षों तक यूरोपीय जीवन–शैली और साहित्य के गहन अध्ययन के बाद भी वे भारतीयता की ठोस जमीन पर सदा खड़े रहेय आत्महीनता और विचारों के थोक आयात के इस युग में उन्होंने एक ऐसा साहित्य–सन्तुलन का मानक रचा जो करणीय ही नहीं, साहस का काम भी साबित हुआ । उनके लेखन में जो बौद्धिक और आत्मिक घनत्व अन्तर्निहित है, वह अद्वितीय है । अद्वितीय इस अर्थ में कि ‘वे ऐसे लेखकों में से हैं जो हमारी आलोचना के सामने एक नयी चुनौती की तरह हैं । उनका साहित्य और चिन्तन उत्तर–औपनिवेशिक समाज में कुछ मौलिक प्रश्न और चिन्ताएँ उठाता है, एक व्यक्ति–लेखक की गहरी बौद्धिक और आध्यात्मिक विकलता व्यक्त करता है और भारतीय परम्परा और पश्चिम की चुनौतियों के द्वन्द्व की नयी समझ देता है ।’ निर्मल वर्मा मानवीय मूल्यों के रागात्मक कथाकार हैं । उनकी रचनाएँ भारतीय और यूरोपीय जमीन पर लिखी जाने के बावजूद मानवीयता की पक्षधर हैं । मध्यवर्गीय चरित्र का जैसा चित्रांकन उनके साहित्य में मिलता है, छठे दशक से लेकर आज तक के रचनाकारों में दुर्लभ है । मध्यवर्गीय जीवन की उदासी, बेचारगी, ऊब और घुटन के बीच जिजीविषा उनकी रचनाओं का केन्द्र है । वे मनुष्य के भीतर की अँधेरी दुनिया में पैठ जीवन के सनातन मूल्यों की खोज करते हैं और उनकी रचनाएँं बाह्य संघर्षों के चित्रण के बजाय अन्तर्यात्राओं में रमती है I
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