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Pados Mein Matam
आज हम इंटरनेट के युग में जी रहे हैं । मनुष्य संवेदना शून्य होकर मशीन बन गया । हमदर्दी, परोपकार ईमानदारी, जीवन–मूल्यों का दूर का भी सम्बन्ध नहीं है । रेलगाड़ी का ट्रैक रेलवे लाईन, हवाई जहाज का ट्रैक आकाश मार्ग है । वाहनों का ट्रैक सड़क है । इसी तरहे मनुष्य का ट्रैक होना चाहिए । उक्त साधन जब–जब अपने रास्ते से या ट्रैक से हटे हैं तब–तब दुर्घटनाएँ घटी हैं । मनुष्य भी मानवता के ट्रैक से उतर गया है इसलिए दुराचार, बलात्कार, भ्रष्टाचार आदि बढ़े हंै । दुराचार की तो जैसे देश में बाढ़ आ गई है । इसलिए मनुष्य को सही ट्रैक पर लाने के लिए सही साधन की नितांत आवश्यक है । आज के युग में मनुष्य का ट्रैक श्री मद्भगवद गीता हो सकती है । छुआछात, जातिवाद आज भी कम नहीं है, छुआछात कम है तो घृणा बढ़ी है । रिश्तों में अपनापन खत्म हो गया । पड़ोस में मातम है तो साथ ही दूसरी ओर जश्न है । आज व्यक्ति मरे हुए पर खाने वाला है । ग्रामीण सभ्यता और संस्कृति में भी परिवर्तन आ गया । अमीरों के चोचले बढ़ते जा रहे हैं । चटनी–रोटी यदि अमीरों के चोचले हैं तो गरीब की मजबूरी हैं । मां की ममता का दुनिया में कोई शानी नहीं है । मुंहबोले रिश्ते कभी–कभी खून के रिश्तों को भी धता बताकर सीमाओं को पार कर जाते हैं । खून के रिश्ते तो मरने तक हैं लेकिन मुंह बोले रिश्ते मरने के बाद भी सदा साथ रहते हैं । दुराचार बाहर से चलकर नजदीक आते–आते घर तक में प्रवेश कर गया है । मनुष्यता खत्म हो गई है पशुता हावी है । आने वाले दिनों में इंसान से अच्छे पशु ही कहे जाएंगे । आदमी तो पशु से भी गया–गुजरा सिद्ध हो चुका है । (इसी पुस्तक में से)
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