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Pani Ki Tez Dhar
नब्बे के दशक में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव घटित हुए जिसने हिन्दी कहानी के मिज़ाज को प्रभावित किया । हरियश राय की कहानियों को पढ़ना पिछले चार दशकों में हुए बदलावों को समझना है । संकलन की ये कहानियां हमारे समय के जरूरी सवालों की तरह बनी रहती हैं और परिवेश के दबावों से बाहर निकलकर मनुष्य के वजूद की मूल चिंताओं व सरोकारों की हकीकत को सामने रखती हैं । इन कहानियों में संवेदना के गहरे अंतरे विद्यमान हैं । बाज़ार की गिरफ्त में समा रही हमारी जीवन शक्तियां, एक खास भौगोलिक परिवेश, हमारे समय की विषम स्थितियां और उन स्थितियों के बीच से निकलती जिजीविषा, हमारे जीवन संघर्ष, जीवन की भीतरी तहों में छिपी उदासी और उस उदासी के बीच से जन्मी करुणा के कई स्तोर इन कहानियों में मौजूद हैं । हरियश राय की ये कहानियां आज के संदर्भ में और भी ज्यादा प्रासंगिक हैं जब कॉरपोरेट संस्कृति हमारे जीवन और मूल्यों को चुपचाप बदल रही है और लोक जीवन की उपेक्षा कर अपने मुनाफ़े को बढ़ाने के सभी उपाय कर रही है । इनके बीच आम आदमी अच्छे दिन की आस में वोट देकर अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है । ये कहानियां पिछले चार दशकों के दौरान सामने आए मंजरों की दास्तांस बयां करती हैं । उपभोग परक जीवन शैली, अपनी जमीन से उखेड़े जाने का दर्द, जीवन मूल्यों का संकट, सामाजिक–आर्थिक परिवेश और बेहतर जीवन की चाह को ये कहानियां गहराई के साथ हमारे सामने रखती हैं । ये सभी कहानियां बाजारवाद, उपभोक्तावाद, और आम आदमी की बदहाली से जुड़े सवालों को सामने रखती है ।
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