• New product

Prasad Ke Natko Mein Ras Aur Dwand

(0.00) 0 Review(s) 
2019
978-81-90478-04-5
Asha

Select Book Type

Earn 5 reward points on purchase of this book.
In stock

जयशंकर प्रसाद एक सजग और युगचेता नाटककार थे । उन्होंने भरत के ‘नाट्यशास्त्र’ का गहन अध्ययन किया था, अत: भारतीय रसवाद के अनुरूप उन्होंने रस को नाटक की आत्मा घोषित किया । प्रसाद ने न केवल सैद्धान्तिक रूप से रस संबंधी अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया अपितु व्यावहारिक रूप से भी अपने समस्त नाटकों में रस का पूर्ण निर्वाह किया है । भारतेन्दु युग से ही हिन्दी–नाटकों पर पाश्चात्य–नाटकों का प्रभाव पड़ना आरंभ हो गया था । यह प्रभाव बांग्ला में द्विजेन्द्र लाल राय के नाटकों से होता हुआ हिन्दी में आया था । युगचेता होने के कारण प्रसाद भी इस प्रभाव से अछूते नहीं रह सके फलस्वरूप उन्होंने भी शेक्सपीयर, द्विजेन्द्र लाल राय प्रभृति नाटककारों के नाटकों का अध्ययन किया । यद्यपि प्रसाद ने द्वन्द्व विषयक सैद्धान्तिक चिंतन नहीं किया है तथापि व्यावहारिक रूप से द्वन्द्व भी उनके नाटकों का अनिवार्य तत्व बनकर आया है । प्रसाद ने अपने समस्त नाटकों में रस और द्वन्द्व का समन्वय प्रस्तुत किया है जिससे उनके नाटक अधिक सशक्त और यथार्थानुकूल बन पड़े है । ‘स्कन्दगुप्त’, ‘चन्द्रगुप्त’ एवं ‘ध्रुवस्वामिनी’-तीनों जयशंकर प्रसाद के सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण नाटक माने जाते हैं । इन तीनों नाटकों में रस और द्वन्द्व का समन्वय अत्यन्त प्रभावशाली बन पड़ा है । प्रस्तुत पुस्तक में प्रसाद के नाटकों में रस और द्वन्द्व की दृष्टि से ‘स्कन्दगुप्त’, ‘चन्द्रगुप्त’ व ‘ध्रुवस्वामिनी’ का विशेष अध्ययन किया गया है ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.